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अब गांव के हर घर में होगी ट्रिन-ट्रिन

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। ग्रामीण क्षेत्रों में टेलीफोन घनत्व बढ़ाने और हर ग्रामीण को दूरसंचार क्रांति से जोड़ने के लिए ट्राई अब नए सिरे से कोशिश करने जा रहा है। इसके लिए वह दूरसंचार कंपनियों को कुछ नए प्रोत्साहन देने के पक्ष में है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण [ट्राई] ने चरणबद्ध तरीके से पांच सौ से ज्यादा आबादी वाले देश के सभी गांवों व कस्बों में दूरसंचार सेवा पहुंचाने की एक योजना बनाई है। इसके...

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जाति आधारित जनगणना के पक्ष में अधिकांश दल

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। आबादी में पिछड़ी जातियों के अनुपात को लेकर कोई ताजा आंकड़ा नहीं होने के बावजूद जनगणना में यह सवाल शामिल करने से इन्कार करना गृह मंत्रालय के लिए भारी पड़ता जा रहा है। गुरुवार को लोकसभा में इस विषय पर चर्चा के दौरान लगभग सभी दलों ने जाति आधारित गणना की वकालत की। यहां तक कि कांग्रेस के भी कुछ सदस्यों ने अन्य पिछड़ा वर्ग के संबंध में आंकड़े जुटाने को बेहद...

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किसानों की आत्महत्याः एक 12 साल लंबी दारूण कथा

   कुछ लोगों के लिए किसानी मुनाफे का धंधा हो सकती है, लेकिन देश की बहुसंख्यक आबादी के लिए यह घाटे का सौदा बना दी गई है. न सिर्फ घाटे का सौदा, बल्कि मौत का सौदा भी. और यह सिर्फ इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि खेती से महज कुछ लोगों का मुनाफा सुनिश्चित रहे. यही वजह है कि खेतिहरों के कर्जे की माफी का फायदा भी आम खेतिहरों को नहीं मिला बल्कि बड़े किसानों को...

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बुद्धि की मंदी है : मुद्दों का न होना- पी साईनाथ

कम-से-कम दो प्रमुख अखबारों ने अपने डेस्कों को सूचित किया कि 'मंदी' (recession) शब्द भारत के संदर्भ में प्रयुक्त नहीं होगा। मंदी कुछ ऐसी चीज है, जो अमेरिका में घटती है, यहां नहीं. यह शब्द संपादकीय शब्दकोश से निर्वासित पडा रहा. यदि एक अधिक विनाशकारी स्थिति का संकेत देना हो तो 'डाउनटर्न' (गिरावट) या 'स्लोडाउन' (ठहराव) काफी होंगे और इन्हें थोडे विवेक से इस्तेमाल किया जाना है. लेकिन मंदी को नहीं. यह मीडिया के दर्शकों के...

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अपने देश में कोई मध्यवर्ग ही नहीं!

नई दिल्ली। अपने देश के जिस मध्यवर्ग को केंद्र में रखकर देसी-विदेशी कंपनियां अपने माल की बिक्री की रणनीति बनाती आई हैं, उसका अस्तित्व ही नहीं है। जिस मध्यवर्ग को राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से सबसे ज्यादा संवेदनशील माना जाता है और जो बड़े-बड़े बदलावों का माध्यम बनता रहा है, उसे अपने देश में ढूंढ़ना बेकार है। भारत जैसे विकासशील देशों में मध्यवर्ग के लिए गढ़ी गई नई अंतरराष्ट्रीय परिभाषा के आधार पर यह...

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