बर्फ का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक आमतौर पर हंसमुख और व्यावहारिक होते हैं। पीटर वदाम्स भी अपवाद नहीं हैं। स्कॉट पोलर रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक और कैंब्रिज में ओशन फिजिक्स के इस प्रोफेसर ने अपना पूरा जीवन बर्फ की दुनिया को जानने-समझने में बिताया है, और अपनी इस यात्रा में उन्होंने कई अकल्पनीय बदलाव देखे हैं। 1970 में जब वह पहली बार ध्रुवीय अभियान पर निकले, तब आर्कटिक महासागर...
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भ्रष्टाचार और प्रदूषण का खनन-- रामचंद्र गुहा
जब नई सदी की शुरुआत हुई, तो मेरे गृह राज्य कर्नाटक में आर्थिक उदारीकरण के ‘पोस्टर बॉय' थे- एन आर नारायण मूर्ति। मध्यवर्गीय परिवार से निकले इस शख्स के पास उद्यमशीलता का कोई पारिवारिक अनुभव नहीं था। नारायण मूर्ति ने अपनी जैसी सोच वाले छह अन्य लोगों को जोड़ा और इन्फोसिस की नींव रखी। बहुत मामूली शुरुआत हुई थी इसकी, मगर साल 2000 तक इस कंपनी का मुख्यालय न सिर्फ बेंगलुरु...
More »खाड़ी देश में फंसे प्रवासियों की पीड़ा - रहीस सिंह
कभी-कभी दो परस्पर विरोधी स्थितियां जब सामने आती हैं, तो वे संशय पैदा करने के साथ काफी हद तक हमें असहज भी बना जाती हैं। इन स्थितियों को देख एक आम प्रश्न मन में उठता है कि यदि हम दुनिया की सबसे चमकदार अर्थव्यवस्था बन रहे हैं तो फिर हमारे युवाओं को काम के लिए दूसरे देशों में खाक छानने की जरूरत क्यों पड़ रही है? दूसरा सवाल यह कि...
More »उड़ती उदारता के पैर हैं नदारद-- अनिल रघुराज
आर्थिक विकास का मतलब अगर देशी-विदेशी कंपनियों के मुनाफे और शेयर बाजार का बढ़ना है, तो देश ने यकीनन पिछले 25 सालों में अच्छा विकास किया है. बीएसइ सेंसेक्स 29 जुलाई, 1991 को 1637.70 पर बंद हुआ था. अभी 29 जुलाई, 2016 को 28,051.86 पर बंद हुआ है. 25 साल में 1612.88 प्रतिशत वृद्धि या 12.03 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर. बाजार में इस दौरान विषमता भी घटी है. 1991...
More »भारत का आइआइटी स्वप्न-- संदीप मानुधने
एक विशाल देश भारत, जिसकी एक अद्भुत प्राचीन संस्कृति रही है, और जिसने तमाम चुनौतियों के बावजूद सदैव अच्छी व गहन शिक्षा को समाज का एक विशिष्ट पहलू बनाये रखा है, वह आज एक दोराहे पर खड़ा है. हमें एक नये तकनीकी विश्व में अपनी ठोस जगह बनानी है, हमारे संसाधन सीमित हैं और हमारे पास वक्त भी कम है. आधुनिक विश्व अर्थव्यवस्था के सबसे प्रबल और शक्तिशाली देशों...
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