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खेती में असली क्रांति -- देविंदर शर्मा

2010 तो इतिहास बनने जा रहा है. मैं सशंकित हूं कि क्या नया साल किसानों के लिए कोई उम्मीद जगाएगा? अनेक वर्षो से मैं नए साल से पहले प्रार्थना और उम्मीद करता हूं कि कम से कम यह साल तो किसानों के चेहरे पर मुस्कान लाएगा, किंतु दुर्भाग्य से ऐसा कभी नहीं हुआ. साल दर साल किसानों की आर्थिक दशा बद से बदतर होती जा रही है. साथ ही कृषि भूमि...

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अब भी हज़ारों किसान कर रहे हैं आत्महत्या- पवन नारा

अगर किसानों की आत्महत्या को किसानों की स्थिती का पैमाना माना जाए तो 2009 में किसानों के हालात बदतर हुए हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकंडों के अनुसार भारत भर में 2009 के दौरान 17368 किसानों ने आत्महत्या की है. किसानों के हालात बुरे हुए हैं, इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसानों की आत्महत्या की ये घटनाएँ, 2008 के मुकाबले 1172 ज़्यादा है. इससे...

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जैविक का व्यापार, एनजीओ और सरकार --- योगेश दीवान

  कितना आश्चर्यजनक है कि अचानक मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री पानी बाबा की तर्ज पर ''जैविक बाबा'' हो जाते हैं और मुख्यमंत्री जैविक प्रदेश घोषित करने के लिये धन्यवाद के पात्र. ये वही मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री हैं, जो कुछ दिन पहले तक और अभी भी प्रदेश की खेतिहर जमीन को बड़ी ही सामंती उदारता से बड़ी-बड़ी कंपनियों को बांटते हुए फोटो खिंचा रहे थे. इसे परंपरागत जैविक के एकदम खिलाफ...

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बिहार में बहार-- देविंदर शर्मा

बिहार में नीतीश कुमार दोबारा सत्ता में वापसी करने में सफल रहे. इससे आम लोगों को अपनी बेहतरी के लिए उम्मीद की किरण दिख रही है. पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री और जाने-माने अर्थशास्त्री महबूब उल हक ने एक बार मुझसे कहा था कि 1960 में वित्त मंत्री रहते समय वह पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर सात प्रतिशत पहुंचाने में समर्थ थे, बावजूद इसके लोगों ने उन्हें हराने के लिए मतदान...

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ग्रामीण गरीबी रिपोर्ट 2011

 जब कभी दुनिया की गरीबी पर कोई रिपोर्ट जारी होती है, तो उसमें दक्षिण एशिया- उसमें भी खासकर भारत सबसे बदहाल दिखता है। हमारे यहां न सिर्फ सबसे ज्यादा संख्या में कम वजन (अंडरवेट) के बच्चे हैं, बल्कि प्रसूति के दौरान माताओं की मृत्यु की दर भी बेहद ऊंची है। भारत में ही सबसे ज्यादा ऐसे बच्चे हैं, जो स्कूल नहीं जाते और विश्व कुपोषण सारणी में भी भारत का...

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