Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | खेती में असली क्रांति -- देविंदर शर्मा

खेती में असली क्रांति -- देविंदर शर्मा

Share this article Share this article
published Published on Jan 4, 2011   modified Modified on Jan 4, 2011
2010 तो इतिहास बनने जा रहा है. मैं सशंकित हूं कि क्या नया साल किसानों के लिए कोई उम्मीद जगाएगा? अनेक वर्षो से मैं नए साल से पहले प्रार्थना और उम्मीद करता हूं कि कम से कम यह साल तो किसानों के चेहरे पर मुस्कान लाएगा, किंतु दुर्भाग्य से ऐसा कभी नहीं हुआ.

साल दर साल किसानों की आर्थिक दशा बद से बदतर होती जा रही है. साथ ही कृषि भूमि किसानों के लिए अलाभकारी होकर उनकी मुसीबतें बढ़ा रही है. रासायनिक खाद के अत्यधिक इस्तेमाल से मिट्टी जहरीली हो रही है. अनुदानित हाइब्रिड फसलें मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर रही है और भूजल स्तर को गटक रही है. इसके अलावा इन फसलों में बहुतायत से इस्तेमाल होने वाले रासायनिक कीटनाशक न केवल भोजन को विषाक्त बना रहे है, बल्कि और अधिक कीटों को पनपने का मौका भी दे रहे है. परिणामस्वरूप किसानों की आमदनी घटने से वे संकट में फंस रहे है. खाद, कीटनाशक और बीज उद्योग किसानों की जेब से पैसा निकाल रहा है, जिसके कारण किसान कर्ज में डूबकर आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर है.

इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि किसानों के खूनखराबे के लिए सबसे अधिक दोषी कृषि अधिकारी और विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक है. रोजाना दर्जनों किसान रासायनिक कीटनाशक पीकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेते है. पिछले 15 वर्षो में कृषि विनाश का बोझ ढोने में असमर्थ दो लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली है. यह सिलसिला रुकता दिखाई नहीं देता. पुरजोर प्रयासों के बावजूद करोड़ों किसान अपनी पीढि़यों को विरासत में कर्ज देने को मजबूर है.

सरकार और कृषि विश्वविद्यालयों को अकारण दोषी नहीं ठहराया जा रहा है, किंतु एक हद तक किसान भी इस संकट के लिए जिम्मेदार है. जल्दी से जल्दी पैसा कमाने का लोभ उन्हे गैरजरूरी प्रौद्योगिकियों की ओर खींच रहा है, जो अंतत: उनके हितों के खिलाफ है. लंबे समय से किसान उपयोगी कृषि व्यवहार से विमुख होते जा रहे है और कृषि उद्योग व्यापार के जाल में फंसते जा रहे है. उद्योग उन्हे एक सपना बेच रहा है-जितनी अधिक उपज प्राप्त करोगे, उतनी ही कमाई होगी, जबकि असलियत में उद्योग जगत का मुनाफा बढ़ रहा है, किसानों को तो मरने के लिए छोड़ दिया गया है.

हरित क्रांति के 40 साल बाद 90 प्रतिशत से अधिक किसान गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे है. मानें या न मानें, देश भर में किसान परिवार की औसत आय 2400 रुपये से भी कम है. यह भी तब जब किसान अधिक आय के चक्कर में तमाम प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल कर रहे है. इस प्रकार अनेक रूपों में किसानों के साथ जो श्राप जुड़ गया है उसके लिए वे भी कम जिम्मेदार नहीं है. जरा इस पर विचार करे कि क्या किसानों को कृषि संकट के लिए दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए? आप कब तक सरकार और कृषि विश्वविद्यालयों के सिर ठीकरा फोड़ते रहेगे. आप कृषि से दीर्घकालिक और टिकाऊ तौर पर अधिक आय हासिल क्यों नहीं करते? कृपया यह न कहे कि यह असंभव है. अगर किसान अपने परंपरागत ज्ञान का इस्तेमाल कृषि में करे तो वे इस लक्ष्य को आसानी से हासिल कर सकते है.

महाराष्ट्र के यवतमल जिले के डरोली गांव के सुभाष शर्मा से मिलिए. वह उस विदर्भ पट्टी से है जहां बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या करते है, लेकिन वह कृषि से अच्छी-खासी आमदनी हासिल कर रहे है. सुभाष शर्मा कोई बड़े किसान नहीं है. उनके पास 16 एकड़ जमीन है. देश में अधिकांश किसानों की तरह वह भी कर्ज के जाल में फंसे हुए थे.

सुभाष के अनुसार, '1988 से 1994 के बीच का समय मेरे लिए सबसे बड़ी परेशानी का समय था. तब मैंने इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने का उपाय ढूंढा और कर्ज का जुआ उतार फेंका. मैंने रासायनिक खाद और कीटनाशकों की कृषि पद्धति को तिलांजलि दे दी और ऑर्गेनिक कृषि को अपना लिया. इससे एक नई शुरुआत हुई.'

वह कहते है कि कर्ज के इस भयावह चक्र से बाहर निकलने का एक ही रास्ता है कि किसान हरित क्रांति के कृषि मॉडल का त्याग कर दें. हरित क्रांति कृषि व्यवस्था में मूलभूत खामियां हैं. इसमें कभी भी किसान के हाथ में पैसा नहीं टिक सकता. अब वह देश भर में कार्यशाला आयोजित कर किसानों को जागरूक कर रहे है कि प्राकृतिक कृषि के तरीकों से कर्ज के जाल को कैसे काटा जा सकता है? कृषि संवृद्धि और देश की खाद्यान्न सुरक्षा का जवाब इसी में निहित है.

सुभाष शर्मा की आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ हो गई है कि उन्होंने कामगारों के लिए 15 लाख का आपात कोष भी जुटा लिया है. किसी की मृत्यु होने पर या फिर बेटी के विवाह के अवसर पर उनके सामाजिक सुरक्षा कोष से कुछ राहत मिल जाती है. वह श्रमिकों के बच्चों की शिक्षा का खर्च भी उठाते हैं. इसके अलावा उन्हें बोनस और छुट्टी यात्रा का भत्ता भी देते हैं.

चौंकिए मत, सुभाष शर्मा अपने 51 कामगारों को प्रतिवर्ष 4.5 लाख रुपये का बोनस देते है, जो प्रति व्यक्ति 9000 रुपये बैठता है. वह अपने श्रमिकों को साल में एक बार घूमने के लिए छुट्टी देते हैं. प्रत्येक कामगार को साल में पचास दिन की छुट्टियां मिलती है. एक ऐसे समय में जब शायद ही किसी दिन श्रमिकों के साथ अमानवीय अत्याचार की खबरें न आती हों, इस तरह का रवैया सुखद आश्चर्य में डालने वाला है.

जहां तक कीटनाशकों का सवाल है, हरियाणा के जींद जिले में चुपचाप एक क्रांति हो रही है. यहां के किसान बीटी कॉटन पैदा नहीं करते, बल्कि प्राकृतिक परभक्षियों पर भरोसा करते है. ये परभक्षी कीट नुकसानदायक कीटों को चट कर जाते है. उन्होंने कपास में लगने वाले प्रमुख कीट मिली बग का प्राकृतिक उपाय खोज निकाला है. जींद के सुरेद्र दलाल ने बड़े परिश्रम के बाद मिली बग को काबू में करने में सफलता प्राप्त कर ली है. उन्होंने इस विषय पर काफी शोध किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि नुकसान न पहुंचाने वाली आकर्षक लेडी बीटल इन मिली बगों को चट करने के लिए काफी है. यह इन मिली बग को बड़े चाव से खाती है, जिससे किसानों का महंगे कीटनाशकों पर पैसा खर्च नहीं होता.

उन्होंने महिला पाठशाला भी शुरू की है. इन दो किसानों ने कृषि क्षेत्र में नया अध्याय लिख दिया है. अब सही समय है कि आप इनकी सफलता से सबक लें और कृषि का खोया हुआ गौरव वापस लौटा दें. निश्चित तौर पर आप यह कर सकते है. इसके लिए बस दृढ़ निश्चय की आवश्यकता है. तभी हम उम्मीद कर सकते है कि किसानों के लिए नया वर्ष नया हर्ष लेकर आएगा.

http://raviwar.com/news/443_green-revolution-vidharv-devinder-sharma.shtml


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close