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दयनीय दशा में बच्चे- स्टेट ऑव द वर्ल्ड चिल्ड्रेन 2011

अगर जानना चाहें कि कोई देश प्रगति के किस मुकाम तक पहुंचा है तो पैमाना बनाइए उस परिवेश को जिसमें वहां बच्चे बड़े हो रहे हैं। परिवेश कुपोषण, भुखमरी, अस्वास्थ्यकर अड़ोस-पड़ोस और जबरिया बाल-मजदूरी का हो तो देश को प्रगति के क्रम में बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।द स्टेट ऑव वर्ल्ड चिल्ड्रेन रिपोर्ट के तथ्यों से पता चलता है कि विश्व के भावी नागरिकों के हक में बड़ा कम निवेश किया जा रहा है।...

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बीच बहस में न्यूनतम मजदूरी

हालांकि केंद्र सरकार ने मनरेगा के अन्तर्गत दी जाने वाले मजदूरी को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ने की बात मान ली है, फिर भी वह इस मामले में संविधानप्रदत्त न्यूनतम मजदूरी देने में संकोच कर रही है जबकि देश के कई सूबों में अब भी मनरेगा के अन्तर्गत दी जाने वाली मजदूरी न्यूतम मजदूरी से कम है। सरकार का तर्क है कि न्यूनतम मजदूरी दी गई तो बढ़ा हुआ वित्तीय...

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प्रतिबद्ध पत्रकार बड़ा बदलाव ला सकते हैं- ज्यां द्रेज

1. झारखंड की स्थापना का एक दशक पूरा हुआ। झारखंड के बारे में आपका मूल्यांकन क्या कहता है ?  झारखंड की जनता ने अलग राज्य बनाने के लिए जब लडाई ठानी तो आस यह लगी थी कि राज्य बना तो उन्हें अपनी जिन्दगी संवारने के बेहतर मौके मिलेंगे।झारखंड की जनता के लिए यह एक तरह से मुक्ति-यज्ञ था।लेकिन हुआ इसके उलट, झारखंड की स्थापना से ताकत उन्हीं की बढ़ी जिनसे जनता...

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इन करोड़ों बच्चों का पता कहां मिलेगा ---शिरीष खरे

2001 की जनगणना के ही अलग-अलग आकड़ों के जोड़-घटाव से एक अहम सवाल उभरता है. पहले आंकड़े के मुताबिक देश के 8 करोड़ 50 लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते. दूसरे आंकड़े में 5 से14 साल उम्र के एक करोड़ 30 लाख बच्चे मजदूर हैं. अगर 8 करोड़ 50 लाख में से 1 करोड़ 30 लाख को घटा दें, तो सात करोड़ 20 लाख बचते हैं. यह उन बच्चों की संख्या है...

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पाठशालाओं में छुआछूत की पैठ

अंजलि सिन्हा। अमेठी के पिछौरा गांव के जूनियर हाईस्कूल ने मिड डे मील पर उठी और पूरे सूबे में चर्चा का सबब बनी समस्या का समाधान निकाल लिया है। तय किया गया है कि दलित रसोइए की भी नियुक्ति होगी, लेकिन वह रसोई के बाहर ही काम करेगी और अंदर वाला काम यानी चूल्हे पर रसोई पकाने का काम सवर्ण रसोइया करेगी। आजाद, संप्रभुता संपन्न कहे जाने वाले दुनिया...

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