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स्वास्थ्य सेवा का सस्ता और कारगर विकल्प हो सकता है 'एमहेल्थ' -- नई रिपोर्ट

देश के स्वास्थ्य ढांचे का 70 फीसद हिस्सा सिर्फ 20 शहरों तक सीमित है. ऐसे में अचरज की बात नहीं जो 30 फीसद भारतीय प्राथमिक स्तर की भी चिकित्सा सुविधा से वंचित है. तो फिर सबको स्वास्थ्य सुविधा फराहम करने का लक्ष्य कैसे हासिल हो ?   कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री(सीआईआई) द्वारा जारी एक नीति-पत्र के मुताबिक इस समस्या का समाधान हो सकता है हमारे-आपके हाथ में मौजूद मोबाइल फोन. (देखें नीचे...

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कहीं बैंकों से भरोसा ना उठ जाय-- बिभाष कुमार श्रीवास्तव

अमेरिका में आए 2008 के वित्तीय भूचाल से पूरी दुनिया में अफरा-तफरी मच गई थी। बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को सरकार ने बेल-आउट पैकेज के माध्यम से उबारा। बेल-आउट का जबर्दस्त विरोध किया गया। लोगों ने कहा कि ‘करदाताओं' के पैसे से किसी विफल होती संस्था को उबारना नैतिक खतरे (मोरल हजार्ड) पैदा करता है। तब वित्तीय मामलों के जानकारों की तरफ से ‘बेल-इन' की नई अवधारणा पेश की गई।...

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पीडब्ल्यूसी और सीआईआई की रिपोर्ट- भारत में 70 फीसदी स्वास्थ्य सेवाएं शीर्ष 20 शहरों तक हैं सीमित

भारत की 70 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी ढांचा शीर्ष 20 शहरों तक ही सीमित है। इसके अलावा 30 फीसदी भारतीय हर साल स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च की वजह से गरीबी रेखा की जद में आ जाते हैं। पीडब्ल्यूसी और सीआईआई द्वारा संयुक्त रूप से जारी किए गए ‘कैसे एमहेल्थ भारतीय स्वास्थ्य सेवा उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन कर सकता हैं', नामक ज्ञान पत्र के मुताबिक, भारत में 30 फीसदी लोग...

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बुनियादी ढांचा सुधरने से थमेंगी कीमतें-- रमेश कुमार दुबे

बंपर उत्पादन और तमाम सरकारी उपायों के बावजूद महंगाई दर में बढ़ोतरी से साबित होता है कि वितरण के मोर्चे पर अभी बहुत कुछ करना है। पिछले साढ़े तीन वर्षों में मोदी सरकार ने ग्रामीण सड़कों, सिंचाई, फसल बीमा और बिजली आपूर्ति के क्षेत्र में अहम सुधार किया है लेकिन भंडारण-विपणन ढांचे में सुधार अभी भी दूर की कौड़ी बना हुआ है। यही कारण है कि कुछ महीने पहले तक...

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आंदोलनों की निरंतरता के दस्तावेज-- शतरुद्र प्रकाश

किसी भी दौर में सरकार की ताकत से लड़ना मजाक नहीं होता। लेकिन यह भी सच है कि सरकार और उसके विरोध के साथ ही लोकतंत्र का विकास हुआ है और भविष्य में भी होता रहेगा। इस वजह से सरकार की मुखालफत आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी 1971, 1975 और 1977 में थी। क्या वाकई पूरी दुनिया में ऐसी कोई शख्सियत थी, जिसने कानून की अदालत में और...

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