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आरटीआइ में आम आदमी की ताकत

मित्रो, सूचना का अधिकार पर हम लगातार बात करते रहे हैं. इस अधिकार के लागू हुए आठ साल पूरे हो गये. हमारे कई पाठकों और आरटीआइ एक्टिविस्टों ने इसे जनतंत्र के खास अवसर के रूप में याद किया. इन आठ सालों में आम से लेकर खास और गैर सरकारी से लेकर सरकारी लोगों ने इस कानून का अपने-अपने हित और हिसाब से खूब किया. इसका अनुभव भी विस्तृत रहा. इस अनुभव को...

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सूचना के अधिकार के सात साल- एक जायजा प्रगति का..

आजादी के बाद से अबतक शासन को पारदर्शी बनाने के लिए जो प्रयास हुए उसमें सूचना का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण कदम है। बहरहाल, इस कानून की उल्लेखनी सफलता महज 0.3 फीसदी भारतीयों तक सीमित है। देश की आबादी में बस इतनी ही तादाद सूचना के अधिकार के तहज अर्जी डालती है। सोचिए, उस स्थिति में क्या होगा जब देश की एक या दो फीसदी आबादी अपने शासकों की जवाबदारी तय करने के लिए आरटीआई...

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आरटीआई- आठ सालों में जनता ने किया भरपूर इस्तेमाल

इन आठ सालों में जनता ने इस कानून और इसके जरिये मिले अधिकार का भरपूर इस्तेमाल किया है, इस बात में कोई मतभेद नहीं हो सकता. व्यक्तिगत काम कराने के लिए भी और देश, समाज व समुदाय के हित में भी. सरकार की गलतियों, सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार और मनमानेपन को नंगा करने में भी इस कानून का इस्तेमाल आम जनता ने किया. इसमें वैसे लोग शामिल हुए, जिनका किसी राजनीतिक या...

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साझी लूट साझी सियासत- कनक तिवारी

जनसत्ता 16 अक्तूबर, 2013 : सर्वोच्च अदालत के दो ताजा लागू फैसलों और केंद्रीय चुनाव आयोग के एक गैर-लागू निर्णय के बाद चुनावी भ्रष्टाचार के दलदल में रसूखदार राजनीतिकों के धंसने का नया युग शुरू हो गया है। न्यायमूर्ति अनंगकुमार पटनायक और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने दस जुलाई के ऐतिहासिक निर्णय के जरिए यह कील ठोंक दी है कि दो वर्ष या इससे अधिक की सजा पाने वाला...

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लोकतंत्र की बेहतरी के लिए- भारत डोगरा

हाल ही में जब केंद्रीय सूचना आयोग ने देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाने की बात की, तो ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया। इसकी वजह साफ थी कि कोई भी दल अपनी आय के स्रोतों का खुलासा नहीं करना चाहता है, क्योंकि अगर वे सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आ जाते हैं, तो उन्हें आय-व्यय के ब्योरे सार्वजनिक करने...

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