जनसत्ता 25 नवंबर, 2013 : बढ़ता कृषक असंतोष, छिटपुट विस्फोटों से प्रकट हो रहा है- भू-स्वामियों के बढ़ते शोषण और दमन के विरोध में सशस्त्र प्रतिरोध की तरफ बढ़ता हुआ यह घटनाचक्र पूरे देश के पैमाने पर, विशेषकर आदिवासियों की तरफ फैलता जा रहा है।’ क्या शीर्षक (आदिवासी: शोषितों में सबसे बुरी स्थिति) समेत इन पंक्तियों के बारे में यह ठीक-ठीक अनुमान लगाया जा सकता है कि ये कब लिखी गई होंगी?...
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आदिवासी विकास के दो चेहरे- अरुण कुमार त्रिपाठी
जनसत्ता 9 नवंबर, 2013 : देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से चार राज्य ऐसे हैं जिनमें आदिवासियों की खासी आबादी निवास करती है, यह बात हम राहुल बनाम मोदी की बहस में भूल जा रहे हैं। संयोग से ये चुनाव ऐसे अवसर पर हो रहे हैं जब आदिवासियों के विकास और उनके बारे में सरकार की नई नीति को लेकर बहस उठ...
More »आर्थिक प्रगति और रोजगार के आंकड़े
नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) के ताजा आंकड़ों को मायूस करनेवाली खबरों के मौसम में, एक राहत देनेवाली आमद माना जा सकता है. एनएसएसओ का कहना है कि 2009-10 से पहले के पांच वर्षो में भारत के शहरों और कस्बों में बेरोजगारी के स्तर में पर्याप्त कमी देखी गयी है. इन पांच वर्षो में बेरोजगारी दर 3.8 फीसदी से घट कर 2.8 फीसदी रह गयी. यह आंकड़ा 2009-10 से पहले...
More »दलित-प्रश्न और मीडिया- उर्मिलेश
जनसत्ता 25 अक्तूबर, 2013 : ‘नो वन किल्ड जेसिका’, सिर्फ एक शानदार अखबारी शीर्षक नहीं था। अपराध-दंड प्रक्रिया में व्याप्त विसंगतियों को उद्घाटित कर वह एक जन-अभियान का नारा बन गया, जिसने अंतत: कामयाबी हासिल की। लेकिन मध्य बिहार के लक्ष्मणपुर-बाथे में मारे गए दलित-उत्पीड़ित तबके के अट्ठावन लोगों के बारे में लंबे इंतजार के बाद नौ अक्तूबर को पटना उच्च न्यायालय का जो फैसला आया, उसके बाद ऐसी आवाजें...
More »ऊर्जा प्रदेश की खोज में- धीरेन्द्र शर्मा
करीब तीन महीने पहले उत्तराखंड में जब तबाही मची, तो एक राष्ट्र के रूप में हम ऐसी हिमालयी आपदा के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन तब भी कुछ पर्यावरणविदों ने यह घोषणा करने में देर नहीं लगाई कि अनियोजित मानवीय गतिविधियों ने इस आपदा को न्योता दिया है। कुछ ने कहा कि जलविद्युत परियोजनाओं ने मानव जीवन को खतरे में डाल दिया है। सुरंगों के लिए पहाड़ों में किए जाने वाले विस्फोट ने...
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