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शिकार नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण विलुप्त हुए ऊनी गैंडे : शोध

-डाउन टू अर्थ, अंतिम हिमयुग के अंत में ऊनी मैमथ, गुफा में रहने वाले शेरों, और ऊनी गैंडों जैसे प्रागैतिहासिक मेगाफ्यूना के दुनिया भर में विलुप्त होने को, अक्सर प्रारंभिक रूप से मनुष्यों के विस्तारवाद को जिम्मेदार ठहराया गया है। बड़े जानवरों को मेगाफ्यूना के रूप में जाना जाता है। अध्ययन में दावा किया गया है कि ऊनी गैंडों के विलुप्त होने का एक कारण जलवायु परिवर्तन है। यह अध्ययन  करंट बायोलॉजी...

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पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (पीएईजी) सामाजिक समूह ने जारी किया द्वितीय मनरेगा ट्रैकर

-पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (पीएईजी) द्वारा जारी द्वितीय मनरेगा ट्रैकर (17 अगस्त, 2020 को जारी) राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (नरेगा) कार्यान्वयन ट्रैकर, नरेगा की मांग को लेकर 2005 में 'रोज़गार गारंटी के लिए जन संघर्ष' (पी.ए.ई.जी.) गठित हुआ। यह एक समूह हैं जिसमें विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ता, शैक्षणिक और अनेक जन संगठनों के सदस्य जुड़े हैं. पी.ए.ई.जी. शोध और अधिवक्तृता के माध्यम से नरेगा के कार्यान्वयन को मजबूत करने के लिए चर्चाओं, लोगों द्वारा...

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एक समय था जब भारत की एक कहानी हुआ करती थी

-सत्याग्रह, 15 अगस्त 2007 यानी भारत की आजादी के साठ साल पूरे होने के मौके पर मैंने देश के हालात को लेकर हिंदुस्तान टाइम्स में एक लेख लिखा था. उन दिनों यह खूब कहा जा रहा था कि भारत एक उभरती हुई विश्वशक्ति है. चीन पहले ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपना लोहा मनवा चुका था और कहा जा रहा था कि अब हमारी बारी है. बहुत से लोगों का मानना था...

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पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने कहा-राजभवन को सर्विलांस पर रखा जा रहा है

-लल्लनटॉप, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ का कहना है कि कोलकाता में राजभवन की निगरानी की जा रही है, इसे सर्विलांस पर रखा जा रहा है. उनका कहना है कि “ऐसा कैसे हो सकता है! किसी भी हाल में राजभवन की सर्विलांस को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. जिन्होंने भी ऐसा किया है, उन्हें सजा मिलनी चाहिए. सर्विलांस से जुड़ी एक लिस्ट राजभवन ने तैयार की है, जिसे जल्द ही जारी किया...

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भारत बीते 50 सालों की सबसे भयावह मानवीय त्रासदी के दौर में प्रवेश कर चुका है

-द वायर, भारत का गरीब और मजदूर वर्ग अब अख़बार के भीतरी पन्नों और टीवी स्क्रीन से गायब हो गया है. ऐसा दिखाने की कोशिश हो रही है कि जब देश में सारी व्यवस्थाएं धीरे-धीरे खुलने लगी हैं और अधिकतर प्रवासी मजदूर अपने गांव लौट गए हैं, तब भूख और रोजी-रोटी की समस्या खत्म हो गई है. जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है. सच तो सिर्फ इतना है कि अचानक से थोपे गए...

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