पिछले कुछ महीनों से रुपये में भारी अवमूल्यन हो रहा था और रुपये डाॅलर की विनिमय दर जो अप्रैल 2018 में लगभग 64 रुपये प्रति डाॅलर थी, 11 अक्तूबर, 2018 तक 74.48 रुपये प्रति डाॅलर पहुंच चुकी थी. एक ओर जहां कमजोर होते रुपये के चलते देश में चिंता का माहौल व्याप्त हो रहा था, नीति निर्माण से जुड़े हुए कई महानुभाव यह कह रहे थे कि रुपये का गिरना...
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कृषि व्यवस्था दुरुस्त करना जरूरी-- वरुण गांधी
कुछ महीने पहले 30,000 से ज्यादा किसानों ने एक लाख रुपये प्रति एकड़ की पूरी कृषि ऋण माफी के साथ 50,000 रुपये सूखा मुआवजे की मांग को लेकर ठाणे से मुंबई तक मार्च किया. इस समय नासिक और मराठवाड़ा जिले के अलग-अलग हिस्सों में कई गांवों को पानी की कमी (औसतन 30 फीसद) का सामना करना पड़ रहा है, जबकि यहां के किसान पहले से ही कम फायदेमंद खरीफ फसलों...
More »किसानों का मार्च (पार्ट-2): जमीन पर बेकार हैं कृषि नीतियां, मौजूदा सिस्टम में बड़े बदलाव की जरूरत
कृषि-संकट कोई अचानक आ धमका हो ऐसी बात नहीं. जैसा कि नीति आयोग के एक रिपोर्ट में कहा गया है, समस्या की शुरुआत 1991-92 से होती है- इससे पहले अर्थव्यवस्था के खेतिहर और गैर-खेतिहर क्षेत्र समान गति से बढ़ रहे थे. साल 1991-92 के बाद गैर-खेतिहर क्षेत्र ने ऊंची वृद्धि-दर की राह पकड़ी. यह आर्थिक उदारीकरण का दौर था. गैर-खेतिहर क्षेत्र की वृद्धि दर 8 फीसदी के पार पहुंच रही...
More »सरकार को आरबीआई पर दबाव नहीं बनाना चाहिए- संदीप बामजई
केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बीच थोड़ी-बहुत खींचतान होती रही है, लेकिन इस बार खींचतान ज्यादा बढ़ गयी है. इनके बीच खींचतान में अक्सर आरबीअाई की स्वतंत्रता और स्वायत्तता का मामला सामने आता है. यह विवाद ठीक नहीं है, क्योंकि आरबीआई स्वतंत्र होने के साथ ही एक स्वायत्त संस्था है. आरबीआई दरअसल भारत का केंद्रीय बैंक है, और इसका काम है मॉनेटरी पॉलिसी (मौद्रिक नीति) की...
More »धन के पर्व पर निवेश की बात- आलोक पुराणिक
सेंसेक्स, यानी मुंबई शेयर बाजार का संवेदनशील सूचकांक, जिसमें देश की शीर्ष तीस कंपनियों के शेयरों के भावों का अंदाज मिलता है। अगर किसी ने करीब एक साल पहले के मुंबई शेयर बाजार के सूचकांक में पैसे लगाए हों, तो वह करीब तीन प्रतिशत के रिटर्न पर बैठा है। यह रिटर्न बहुत ही खराब माना जाएगा। हाल के कुछ महीने शेयर बाजार के लिए बहुत खराब बीते हैं, क्योंकि...
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