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किसने बनाया किसान को गरीब- कुसुमलता केडिया

भारत की हजारों वर्षों की जिस संपन्नता की बात की जाती है, वह मुख्यतया किसानों, शिल्पियों और व्यापारियों पर टिकी थी। राजकोष में आने वाले धन का सबसे बड़ा हिस्सा किसानों से प्राप्त होता था। मनु-स्मृति, विष्णुधर्मसूत्र, गौतमधर्मसूत्र आदि में स्पष्ट व्यवस्था है कि सामान्यतया राज्य कृषि उत्पादन का बारहवां अंश लेगा। अगर कोई विशेष संकट उपस्थित हो तो आठवां या छठा अंश भी मांगा जा सकता है। कभी-कभार ही...

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भारतीय लोकोपकार

“रिवीलिंग इंडियन फिलैंथ्रोपी” पढ़ने के बाद, फ्रांसेस्को ओबिनो का सवाल है कि क्या भारत में लोकोपकार(फिलैंथ्रोपी) समतामूलक तथा टिकाऊ विकास में मददगार हो सकता है । भारत में घरेलू लोकोपकार की बढ़ती हुई क्षमता आशा जगाती है। भारतीय करोड़पतियों की संख्या 2012 में एक लाख तिरपन हजार (यूएस डॉलर के आधार पर) थी और अनुमानों के मुताबिक साल 2017 तक यह संख्या दो लाख बयालीस हजार तक पहुंच जायेगी जो अपने...

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वर्ष 2050 तक वैश्विक आबादी हो जाएगी 9. 7 अरब : अध्ययन

पेरिस। दुनिया की आबादी अभी 7.1 अरब है जो वर्ष 2050 में बढ़ कर 9.7 अरब हो जाएगी और भारत चीन को पीछे छोड़ कर सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। फ्रांस के ‘‘फ्रेंच इन्स्टीट्यूट ऑफ डेमोग्राफिक स्टडीज’’ (आईएनईडी) की एक द्विवार्षिक रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि इस सदी के अंत तक पृथ्वी में लोगों की संख्या 10 से 11 अरब तक होगी। इससे पहले, जून में संयुक्त राष्ट्र के...

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40 देशों में राजनीतिक दल करते हैं आय का खुलासा

नई दिल्ली। फ्रांस, इटली, जर्मनी और जापान सहित 40 देशों में राजनीतिक दलों को कानून के तहत अपनी आय का स्रोत, संपत्तियों और देनदारियों का अन्य रिकार्ड के साथ खुलासा करना होता है। एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ की रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है। कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव (सीएचआरआइ) की रिपोर्ट के अनुसार स्वीडन और तुर्की जैसे देशों में राजनीतिक दलों में स्वैच्छिक व्यवस्था है जिसमें वे अपने रिकार्ड सार्वजनिक करते हैं। इन देशों...

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जो अन्न उपजाता है वही भूखा रह जाता है : देविंदर शर्मा

खाद्य सुरक्षा विधेयक का विरोध दो कारणों से हो रहा है. एक राजनीतिक और दूसरा कॉरपोरेट घरानों या उनके समर्थक अर्थशास्त्रियों की ओर से. उनका कहना है कि खाद्यान्न सुरक्षा पर हर साल एक लाख 25 हज़ार करोड़ रुपये  खर्च होगा. इससे घाटा बढ़ेगा इसलिए इसकी कोई ज़रूरत नहीं है. खाद्यान्न सुरक्षा पर हर साल एक लाख 25 हज़ार करोड़ रु पए ख़र्च होने पर एतराज़ जताया जा रहा है....

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