भारत में लिखित संविधान से पहले नदियों को मां का अधिकार देने वाला अलिखित संस्कार-व्यवहार दिया गया था। दुर्भाग्य से लिखित संविधान में वैसी व्यवस्था नदियों के लिए नहीं की गई। जबकि नदियां बाढ़-सुखाड़ से किसी भी राष्ट्र को नष्ट कर सकती हैं। यह प्रकृति और नदियों का क्रोध कहलाता है। इस क्रोध से बचने के लिए भारत के लोगों ने नदियों को अपनी मां कहा और उनके साथ जीवित...
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न्याय की प्रतीक्षा में आदिवासी!- सी आर मांझी
भारतीय संविधान के आधार पर आदिवासियों की पहचान को अनुसूचित जनजातियों के नाम से जाना जाता है. परंतु यह सर्वज्ञात है कि भारत की आजादी के पूर्व और आजादी के बाद भी व्यावहारिक दृष्टिकोण से आदिवासी समुदाय में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है. यह समाज अपने स्तर से अपनी असली आदिवासी की पहचान एवं परिचय को संजोकर आदिम परंपरागत निष्ठा, निश्छलता, आदर्श एवं धार्मिक आस्था को बनाये रखा...
More »लंबा है असम की अस्मिता का संघर्ष - एनके त्रिपाठी
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का अंतिम मसौदा सामने आने के बाद बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या एक बार फिर सुर्खियों में है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं कि असम के मूल निवासी दशकों से इस समस्या से जूझ रहे हैं। मैं भारतीय पुलिस सेवा में रहा हूं और अपने इस सेवाकाल के दौरान मुझे असम के लोगों द्वारा घुसपैठियों के खिलाफ संघर्ष को करीब से देखने का मौका...
More »यूपी के छह करोड़ गरीबों को पांच लाख का मुफ्त इलाज
प्रदेश के छह करोड़ गरीब लोगों को सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में पांच लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज उपलब्ध कराया जाएगा। इसके लिए अधिकारियों को राज्य और जिला स्तर पर निजी अस्पतालों को सूची बनाकर प्राथमिकता पर काम करने के निर्देश दिए गए हैं। मुख्य सचिव डॉ. अनूप चन्द्र पाण्डेय ने यह निर्देश मंगलवार को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक में दिए। उन्होंने कहा कि...
More »जड़ों से कटा आधारहीन वर्ग--पवन के वर्मा
एक ब्लॉगिंग साइट को दिये एक इंटरव्यू में मैंने यह कहा कि लुटियन (नयी दिल्ली का अंग्रेजों द्वारा निर्मित हिस्सा) का उच्च वर्ग चतुर्दिक जल से घिरे द्वीपों की तरह जड़ एवं आधार से रहित है, जिसकी पहचान सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी ही है. इसके पक्ष और विपक्ष में बड़ी तादाद में टिप्पणियां आयीं. इसलिए मैंने यह महसूस किया कि मुझे अपनी बात का आशय कुछ और विस्तार से प्रकट...
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