ऐसा क्या हो गया है कि भारत के बुद्धिजीवियों को राष्ट्रविरोधी होने का खिताब मिल रहा है? क्या स्वतंत्र चिंतन, सरकारी नीतियों की आलोचना राष्ट्रहित में नहीं है? आखिर उन्हें क्यों लगता है कि व्यवस्था गरीबों के हित में नहीं है? और यदि यह सही है, तो फिर व्यवस्था को ठीक करने का क्या उपाय किया जा सकता है? क्या यह भारतीय बुद्धिजीवियों का दायित्व नहीं है कि वे...
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कीमती डेटा की सुरक्षा जरूरी-- पवन दुग्गल
वर्तमान भारत आज विशेष तौर से साइबर सुरक्षा में सेंधमारी या डेटा सेंधमारी की चुनौतियों का सामना कर रहा है और उससे डील करने की थोड़ी सी कोशिश भी कर रहा है. इसका सीधा सा कारण यह है कि भारत को जितना महत्व साइबर सुरक्षा को देना चाहिए, उतना महत्व नहीं दे रहा है. साइबर सुरक्षा को लेकर भारत में आज तक कोई विशिष्ट कानून नहीं बन पाया है. एकमात्र कानून...
More »शक्ति की मौलिक कल्पना के नौ दिन-- पद्मा सचदेव
आज से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो गई है। इसे महानवरात्र भी कहा जाता है। श्रद्धालु आज से नौ दिनों तक पूजा कर मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करेंगे। इन नौ दिनों में मां के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाएगी, जिसे ‘शक्ति की पूजा' भी कहते हैं। जिन लोगों ने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की राम की शक्ति पूजा पढ़ी होगी, वे यह जानते होंगे कि महाकवि निराला ने...
More »क्या कहता है यह बिगड़ता मौसम-- विजेता रत्तानी
पिछले दिनों लौटती मानसूनी बारिश देश के उत्तरी राज्यों पर कहर बनकर टूटी। सिर्फ एक दिन में, यानी 24 सितंबर को पंजाब में सामान्य से 12 गुना ज्यादा बारिश हुई। उसी दिन हरियाणा में नौ गुना अधिक, तो हिमाचल प्रदेश में छह गुना ज्यादा पानी बरसा। जम्मू-कश्मीर भी बारिश से अचानक आई बाढ़ से डूबता-उतराता रहा। इस अप्रत्याशित बारिश से पंजाब-हरियाणा के खेतों में खड़ी खरीफ और नकदी फसलों को...
More »संविदा कृषि व सरकार की भूमिका-- स्मृति शर्मा
यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों को उनके उत्पादों की बेहतर कीमत मिले और कटनी-दौनी के बाद होनेवाले नुकसानों में कमी हो, सरकार किसानाें को कृषि उद्योगों से जोड़ने का प्रयास करती रही है. संविदा कृषि इसी दिशा में एक अच्छा कदम है. संविदा कृषि (काॅन्टैक्ट फार्मिंग) का आशय किसान तथा प्रसंस्करण या विपणन कंपनियों के बीच अग्रवर्ती व्यवस्था के तहत प्रायः पहले से तय कीमतों पर कृषि उत्पादों...
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