एक हालिया अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2047 तक भारत में कूड़े का ‘उत्पादन' पांच गुना बढ़ जाएगा। इसका अर्थ है कि हमारा देश दुनिया भर में कूड़े का सबसे बड़ा उत्पादक बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। यह बहुत चिंताजनक है, एक ऐसे देश में, जहां कूड़ा प्रबंधन पहले से ही बहुत बड़ी समस्या है। इतना ही नहीं, हमारे यहां पारंपरिक तरल और ठोस कूड़े के अलावा...
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महिला सशक्तीकरण की बाधित राह-- ज्योति सिडाना
दहला देने वाली इन कुछ घटनाओं पर नजर डालें। चार मार्च, 2018 को बिहार के भोजपुर में दुकान पर सामान लेने गई चार साल की बच्ची के साथ एक युवक ने दुष्कर्म कर उसे मारने की धमकी दी। सात मार्च को कोलकाता में कूड़ा बीनने वाली महिला की तीन साल की बच्ची से दुष्कर्म किया। एक और घटना में सात और दस साल की दो बहनें ट्यूशन से लौट कर...
More »दलितों की नहीं, वोट बैंक की फिक्र - प्रदीप सिंह
जहां व्यक्तियों के निजी स्वार्थ बहुत महत्वपूर्ण हों और समाज का कोई स्वार्थ न हो, वहां अंतर्कलह होना कोई अनहोनी बात नहीं है। यह बात आज की राजनीतिक परिस्थिति पर सटीक बैठती है। राजनीतिक दलों के स्वार्थ समाज और देश के हित पर भारी पड़ रहे हैं। राजनीतिक दलों की आपसी प्रतिद्वंद्विता/प्रतिस्पर्द्धा स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छी भी है और जरूरी भी। संसदीय जनतंत्र में विपक्ष की भूमिका बड़ी अहम...
More »यूपी, बिहार और झारखंड समेत नौ राज्यों के लिए नहीं बढ़ी मनरेगा की मजदूरी
काम ज्यादा- पैसा कम-- शायद, नये वित्तवर्ष में मनरेगा के मजदूरों के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय का संदेश यही है.अगर बात अटपटी लगे तो इस तथ्य पर विचार कीजिए : पिछले साल के आखिर में खेती-बाड़ी के काम में मनरेगा के फायदे गिनाते हुए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कहा वित्तवर्ष 2017-18 में कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियों पर अबतक मनरेगा की 71 फीसद राशि खर्च हुई है लेकिन नये वित्तवर्ष में...
More »निजीकरण नहीं वनों का हो कायाकल्प-- रामचंद्र गुहा
पैंतालीस साल पहले अलकनंदा घाटी के ग्रामीणों ने जब जंगल से पेड़ काटकर ले जाने वालों को रोका, तो किसी ने सोचा न होगा कि यहीं से चिपको आंदोलन की नींव पड़ने जा रही है। एक ऐसा किसान आंदोलन, जिसने भारत में वनों के व्यावसायिक दोहन पर सबका ध्यान खींचा। चिपको आंदोलन का ही यह असर था कि वनाधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी। गढ़चिरौली, बस्तर, सिंहभूम और पश्चिमी घाट सहित...
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