हर धर्म के मानने वाले अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ और न्यायपूर्ण मानते हैं। लेकिन तमाम धर्मों के नियमों पर पुरुष प्रधानता की गहरी छाप दिखाई देती है। जब भी महिलाओं ने अपने धर्म के नाम पर उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है, उन्हें जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा है। अक्सर इस विरोध का नेतृत्व धर्मगुरुओं ने किया है। जहां प्रगतिशील पुरुषों की मदद से हिंदू...
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अप्रभावी कानूनों से बढ़ रहे नीम-हकीम : कोर्ट
नई दिल्ली। दिल्ली की एक कोर्ट का कहना है कि देश में प्रभावी कानून व मुकदमे की प्रक्रिया का अभाव होने से नीम-हकीमों को बढ़ावा मिल रहा है जबकि इन अनैतिक लोगों के धंधे रूकना चाहिए। इस कठोर टिप्पणी के साथ ही उसने अनुचित दवाइयों से इलाज करने वाले एक व्यक्ति को दोषमुक्त कर दिया। दोषमुक्त किए गए व्यक्ति पर इंजेक्शन लगाने के बाद बच्चे की मौत होने का एक अलग...
More »गांवों में नर्सें पूरी करेंगी डाॅक्टरों की कमी- अदिति टंडन
एमबीबीएस डॉक्टरों की नियुक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में अनिवार्य करने का मामला भले ही अटका हो, लेकिन सरकार ने गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी पूरी करने के लिए विशेषज्ञ नर्सों का नया कैडर बनाने की तैयारी कर ली है। इसके लिए स्वास्थ्य मंत्रालय 2 नये स्पेशल कोर्स शुरू करने जा रहा है। इनसे न सिर्फ नयी और मौजूदा नर्सों को करियर में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा, वहीं ग्रामीणों को...
More »अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा-- नीलांजन मुखोपाध्याय
नई दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चल रहे राजनीतिक विवाद का भिन्न-भिन्न कोणों से विश्लेषण किया जा सकता है। संसद हमले के षड्यंत्रकारी या कश्मीर की आजादी या पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगाने का समर्थन कोई नहीं करेगा, ऐसा करना भी नहीं चाहिए। अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नहीं कि छात्र इसकी सीमा का अतिक्रमण करें। लेकिन इसी आधार पर अफजल गुरु की बरसी पर एक...
More »फंदा ऋण का, फांस बचत की-- अनिल रघुराज
हम ही हम हैं सब जगह. हमारे बिना किसी का काम नहीं चलता. न सरकार की सत्ता चलती है और न ही कंपनियों और बैंकों का धंधा. टैक्स से रूप में मिला जनधन ही सरकार की संजीवनी है और लोगों से मिली जमा ही बैंकों का मूलाधार है. लेकिन विचित्र कालिदासी व्यवस्था है कि सभी अपने मूलाधार को ही काटने में जुटे हैं. इसे रोकने के सरंजाम जरूर हैं. लेकिन...
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