लगातार सस्ता होता कच्चा तेल भले ही तेल आयातक देशों का खजाना भर रहा हो, लेकिन अब इसके कई पर्यावरणीय व आर्थिक दुष्परिणाम निकलने की आशंकाएं हैं. कच्चे तेल की कीमतों के 40 डॉलर प्रति बैरल के मनोवैज्ञानिक स्तर से भी नीचे जाने के बाद अब इसके 20 डॉलर तक गिरने के अनुमान किये जा रहे हैं. पहले कच्चे तेल की कीमतें मांग और आपूर्ति से निर्धारित होती थीं, लेकिन...
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जलवायु न्याय की डगर पर-- एन के सिंह
रॉबर्ट स्वान की इस पंक्ति को याद करना जरूरी है- यह सोच हमारी पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा खतरा है कि कोई दूसरा इसे बचा लेगा। कई वैज्ञानिक रिपोर्ट यह इशारा करती हैं कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के मौजूदा खतरे की वजह मानवीय गतिविधियां हैं, इसलिए इससे निपटने की जवाबदेही भी मनुष्यों की ही होनी चाहिए। बान की मून के शब्दों में- जलवायु परिवर्तन किसी सीमा से बंधा...
More »तेज इकोनॉमिक ग्रोथ का फॉर्मूला- भरत झुनझुनवाला
बाजार में मंदी का वातावरण है. महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के सीमेंट विक्रेता ने बताया कि उसकी बिक्री 40 प्रतिशत कम हुई है. सूरत के टैक्सी वाले के ग्राहकों में कमी आयी है. अब उसकी टैक्सी माह में 6-7 दिन ही चलती है. बाकी खड़ी रहती है, चूंकि बाहर के व्यापारी कम ही आ रहे है. बाजार में मांग के दो स्रोत हैं- घरेलू एवं विदेशी. लेकिन इस समय दोनों...
More »अन्न की बर्बादी और भूख-- रविशंकर
हर साल देश में करीब पचास हजार करोड़ रुपए का अनाज बर्बाद हो जाता है। एक ऐसे देश में जहां करोड़ों की आबादी को दो जून ठीक से खाना नहीं नसीब होता, वहां इतनी मात्रा में अनाजों की बर्बादी किस तरह की कहानी कहती है? इसकी पड़ताल कर रहे हैं रविशंकर। यह विडंबना नहीं, उसकी पराकाष्ठा है कि सरकार किसानों से खरीदे गए अनाज को खुले में छोड़कर अपना कर्तव्य पूरा...
More »पर्यावरण के नजरिए से आहार- रमेश कुमार दुबे
अगर गोमांस (बीफ) के बढ़ते इस्तेमाल को पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए तो इतना विवाद न हो। गहराई से देखा जाए तो आज जलवायु परितर्वन, वैश्विक तापवृद्धि, भुखमरी, नई-नई बीमारियां प्रत्यक्ष रूप से मांसाहार के बढ़ते चलन से जुड़ी हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) के मुताबिक एक मांस-बर्गर तैयार करने में तीन किलोग्राम कार्बन उत्सर्जित होता है। ऐसे में धरती की रक्षा के लिए मांस की बढ़ती...
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