मानव जाति की मूल आवश्यकताओं की बात करें तो रोटी, कपड़ा और मकान का ही नाम आता है। इनमें रोटी सर्वोपरि है। रोटी यानी भोजन की अनिवार्यता के बीच आज विश्व के लिए शर्मनाक तस्वीर यह है कि वैश्विक आबादी का बड़ा हिस्सा अब भी भुखमरी का शिकार है। भुखमरी की इस समस्या को भारत के संदर्भ में देखें तो संयुक्त राष्ट्र द्वारा भुखमरी पर जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया...
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कचरे के निपटारे की चुनौती-- मोनिका शर्मा
एक हालिया अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2047 तक भारत में कूड़े का ‘उत्पादन' पांच गुना बढ़ जाएगा। इसका अर्थ है कि हमारा देश दुनिया भर में कूड़े का सबसे बड़ा उत्पादक बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। यह बहुत चिंताजनक है, एक ऐसे देश में, जहां कूड़ा प्रबंधन पहले से ही बहुत बड़ी समस्या है। इतना ही नहीं, हमारे यहां पारंपरिक तरल और ठोस कूड़े के अलावा...
More »फंसे कर्ज का बढ़ता मर्ज-- सतीश सिंह
एक तरफ भारतीय बैंक पहले से ही फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या से जूझ रहे थे, दूसरी तरफ पंजाब नेशनल बैंक में हुए फर्जीवाड़े ने एनपीए की समस्या को और गंभीर बना दिया है, क्योंकि इस फर्जीवाड़े का आंशिक असर यूनियन बैंक आॅफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक और ऐक्सिस बैंक पर पड़ सकता है, क्योंकि इन तीनों बैंकों ने पीएनबी द्वारा जारी किए गए एलओयू के आधार पर नीरव मोदी की...
More »‘वयं आधुनिका:’-- मृणाल पांडे
आपको यह जानकर अचरज होगा कि जिस तरह आज हम अंग्रेजी में ‘द न्यू रियल' यानी नयी सच्चाई को जगह देकर पुरानी सचाइयों को खारिज कर रहे हैं, वह सिलसिला आज का नहीं, बहुत पुराना है. सदियों से हर नयी पीढ़ी यह दावा करती आयी है कि वह पुरानों से बेहतर है. सबसे पहले का लिखित दावा 11वीं सदी के आसपास का है. इसमें मिथिला के उदयनाचार्य अपने निकट परवर्ती...
More »छोटे उद्योग पनपें तो सुधरेगी अर्थव्यवस्था-- भरत झुनझुनवाला
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दावोस में विश्व के निवेशकों को बताया था कि भारत में व्यापार करना अब आसान हो गया है। उन्होंने इस बात के प्रमाण में विश्व बैंक द्वारा ‘व्यापार करने की सुगमता' अथवा ‘इज ऑफ़ डूइंग बिजिनेस' रपट का उल्लेख किया था। लेकिन व्यापार करना आसान होने के बावजूद देश में विदेशी निवेश की मात्रा बढ़ने के स्थान पर घट रही है। अप्रैल से दिसंबर, 2016 की...
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