जनसत्ता 12 सितंबर, 2013 : सोलह दिसंबर के दिल्ली के चर्चित बलात्कार कांड की बाबत अदालती फैसला आ गया है। इस फैसले के बरक्स स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा ज्यों की त्यों जारी है। सारे समाज को उद्वेलित करने वाले इस कांड के बाद यौनहिंसा से संबंधित कानूनों की समीक्षा की जरूरत महसूस हुई और इसके लिए केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता में...
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गांव के लोगों की ही देन है आरटीआइ आंदोलन
आरटीआइ कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल किसी परिचय के मोहताज नहीं है. वे आरटीआइ कानून के अमल में आने के बाद से ही लगातार इस हथियार के जरिये आम जनता के हित में लड़ाई लड़ते रहे हैं. चाहे मामला न्यायपालिका में फैले का भ्रष्टाचार का हो या फिर राजनीतिक दलों को आरटीआइ के दायरे में लाने का उन्होंने यह मुहिम निरंतर जारी रखी है. इतना ही नहीं वे नौजवान पीढ़ी की ओर आरटीआइ...
More »बोल बड़े बिल अटके पड़े- हिमांशु शेखर
कांग्रेस दावा करती है कि उसका हाथ आम आदमी के साथ है. लेकिन उसकी अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने कई ऐसे विधेयक लटका रखे हैं जिनका सीधा संबंध उसी आम आदमी की भलाई से है. हिमांशु शेखर की रिपोर्ट. संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की मुख्य पार्टी कांग्रेस के नेता यह दावा करते हुए नहीं अघाते कि उनकी सरकार के लिए आम आदमी का कल्याण सबसे पहले है. लेकिन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली...
More »कैसे थमेगी स्त्रीविरोधी हिंसा- विकास नारायण राय
जनसत्ता 2 सितंबर, 2013 : लैंगिक असमानता के जंगल में भेड़ियों का यौनिक हिंसा का खेल थमना नहीं जानता। तो भी एक अभिभावक की हैसियत से कोई नहीं चाहेगा कि उसकी बेटी का ऐसे दरिंदों से वास्ता पड़े। स्त्री के विरुद्ध होने वाली घृणित यौनिक हिंसा की ये पराकाष्ठाएं किसी भी अभिभावक को वितृष्णा और असहायता से भर देंगी। मगर आसाराम पर लगे आरोप या मुंबई में फोटो-पत्रकार के साथ...
More »सवाल भरोसा बहाल करने का है- योगेन्द्र यादव
सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) में बदलाव के लिए पेश हुए बिल पर अगले हफ्ते बहस होनी है, लेकिन फैसला सबको मालूम है. कानून में बदलाव के मुद्दे पर सारे दल एकजुट हैं, सो संशोधन होकर रहेगा. मंशा कानून को ऐसे बदलने की है कि राजनीतिक दल आरटीआइ के घेरे में आने से बचे रहें. पार्टियों के इस रवैये से आम आदमी को एक बार फिर लगेगा कि कायदे-कानून सिर्फ...
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