बिहार में अब सिर्फ दलितों और पिछड़ों की राजनीति नहीं हो रही, इसकी राजनीति का नया रुझान महादलित और अति पिछड़ों से जुड़ा है। ये दो श्रेणियां बताती हैं कि जिन्हें हम दलित और पिछड़े वर्गों की तरह देखते हैं, उनका स्वरूप हर जगह एक सा नहीं है। इन वर्गों के भीतर भी गैर-बराबरी, ऊंच-नीच या भेदभाव है। इसके चलते संसाधनों का समान वितरण नहीं हो पाता। इनके भीतर भी ऐसी...
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मैली होकर बेकार हो जायेंगी नदियां
नदियां हमारी संस्कृति की खेवनहार हैं. ये महज जल का स्रोत नहीं, बल्कि हमारे सुख-दुख की साथी हैं. लेकिन विकास की अंधी दौड़ में हम इन्हें इतना गंदा कर चुके हैं कि अधिकांश नदियां अब किसी काम की नहीं रह गयी हैं. पितृपक्ष पर पितरों को तर्पण के लिए यमुना के केशीघाट पर पहुंचे आइआइटी मद्रास के सेवानिवृत्त प्रोफेसर श्रीश चौधरी का कैसा रहा अनुभव, आइए जानें श्रीश...
More »शौचालय नहीं था इसलिए छोड़ दिया पिया का घर!
अरविन्द शर्मा, इटारसी(मध्यप्रदेश)। अपनी ससुराल में शौचालय न होने से तंग आकर एक विवाहिता पिछले दो साल से पिया का घर छोड़कर अपने पीहर (मायके) में रहने को मजबूर है। पति के साथ सात फेरे लेकर हर विवाहिता यह वचन लेकर जाती है कि अर्थी उठने तक वह अपने पिया के घर ही रहेगी, लेकिन शाहपुर तहसील के ग्राम पतौआपुरा में ब्याही एक नवविवाहिता को पक्का शौचालय न होने से...
More »इंजीनियरों से हारे किसानों ने खुद ही बना डाला अस्थाई बंध
विनोद सिंह, जगदलपुर (छत्तीसगढ़)। जल संसाधन विभाग से क्षतिग्रस्त सिंचाई योजना की मरम्मत की गुहार लगाकर थक चुके तोकापाल ब्लाक के रायकोट के किसानों ने खुद ही नाला में अस्थाई बंध तैयार कर एक मिसाल कायम की है। इंजीनियरों के झूठ व झूठे वादों को दरकिनार कर किसान अस्थाई बंध का निर्माण कर आज की स्थिति में हर साल खरीफ और रबी सीजन में 60 से 70 हेक्टेयर क्षेत्र में...
More »दादरी कांड, 'भीड़-न्याय' और उसके खतरे! - एनके सिंह
पिछले 70 सालों में भारत में शायद ही कोई ऐसा नेतृत्व रहा हो, जिसे विदेशों में इतनी सकारात्मक उत्सुकता से देखा जा रहा हो, जितना नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को। इसमें दो-तरफा वाणिज्य भी है और उभरते भारत की तस्दीक भी। जुकरबर्ग, पिचाई, नडेला बेमतलब ही फोटो खिंचवाने नहीं आते। मोदी विरोधियों को यह समझना पड़ेगा कि जब से भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ समेकित हुई है, कोई...
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