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आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत सिर्फ 28 फ़ीसदी प्रवासी मज़दूरों को ही राशन मिला

द वायर, कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन के कारण अपने घरों को लौटने को मजबूर हुए और खाद्यान्न संकट से जूझ रहे प्रवासी मजदूरों में से सिर्फ करीब 28 फीसदी लोगों को ही अभी तक आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत राशन मिला है. व्यापक आलोचना और महामारी के दौरान सभी लोगों को राशन मुहैया कराने के लिए उठी मांगों के बाद केंद्र सरकार ने 15 मई 2020 को घोषणा किया था कि...

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भारत में सांप के काटने से 20 साल में मारे गए लाखों लोग

-बीबीसी, एक नई स्टडी के ज़रिए भारत में पिछले बीस सालों में सांप के काटने से तकरीबन 12 लाख लोगों की मौत का अनुमान लगाया गया है. इस स्टडी के अनुसार सांप के काटने या सर्प दंश से मरने वाले तकरीबन आधे लोगों की उम्र 30 साल से 69 साल के बीच थी. मरने वालों में एक चौथाई बच्चे थे. सर्प दंश से होने वाली ज़्यादातर मौतों के लिए 'रसेल्स वाइपर' (दुबोइया), 'करैत'...

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मनरेगा जरूरी या मजबूरी-7: शहरी श्रमिकों को भी देनी होगी रोजगार की गारंटी

-डाउन टू अर्थ, 2005 में शुरू हुई महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना एक बार फिर चर्चा में है। लगभग हर राज्य में मनरेगा के प्रति ग्रामीणों के साथ-साथ सरकारों का रूझान बढ़ा है। लेकिन क्या यह साबित करता है कि मनरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है या अभी इसमें काफी खामियां हैं। डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है, जिसे एक सीरीज के तौर...

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भारतीय महिलाएं अपने से कम पढ़े-लिखे पुरुषों से शादी क्यों करती हैं?

-सत्याग्रह,  भारतीय महिलाओं के शिक्षा के स्तर में तो बढ़ोत्तरी हो रही है लेकिन इसके साथ-साथ अब उनके लिए अपने जितना या ज्यादा पढ़ा-लिखा दूल्हा पाना पहले से मुश्किल हो गया है. और इसकी वजह यह नहीं है कि अब वे लड़कों से ज्यादा शिक्षित हो गई हैं. यह परिणाम एक ऐसे शोध के हैं जिसमें 1970 से लेकर 2000 के दशक तक भारत में हुई शादियों की तुलना की गई...

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गरीबों की फिक्र करो

-आउटलुक, महज कुछ महीनों में ही कोविड-19 की महामारी ने समूची दुनिया में उथल-पुथल ला दी। दुनिया भर की सरकारें इस पर काबू पाने मे जुटी हुई हैं। इस संकट में बेरोजगारी बढ़ी है और खाने-पीने और आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई भी बाधित हुई। पूरी दुनिया पर आर्थिक मंदी के बादल मंडरा रहे हैं।  ऐसी परिस्थिति में लोगों का निराश होना स्वाभाविक है। फिर भी यह वक्त मानव जीवन-शैली पर चिंतन...

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