नयी दिल्ली/पटना : सरकारी स्कूलों में छात्र-कमरा अनुपात (एससीआर) तथा शिष्य-शिक्षक अनुपात (पीटीआर) में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. यह बात आर्थिक समीक्षा में कही गयी है. वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद में पेश 2017-18 की आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा गया है कि प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर लड़कियों का दाखिला बढ़ने से स्त्री-पुरुष समानता सूचकांक (जीपीआइ) में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है. हालांकि, उच्च शिक्षा के स्तर...
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बजट : जीडीपी का एक फीसद से भी कम खर्च हुआ है कृषि और ग्रामीण विकास पर
खेती-किसानी और ग्रामीण विकास पर सरकार कितना खर्च करती है- क्या बजट से पहले यह सवाल आपको अहम जान पड़ता है ? सवाल का एक उत्तर मिल सकता है देश महत्वपूर्ण मंत्रालयों के वास्तविक खर्च के आंकड़ों से. अनुमान लगाइए कि बीते छह सालों में कृषि मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय का वास्तविक व्यय कितना रहा होगा ? इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज टीम का शरुआती आकलन है कि इन दोनों...
More »महानगरों के दड़बे-- अभिषेक कुमार
भारत जैसे आबादीबहुल देश में रोटी और कपड़े के बाद तीसरी सबसे अहम जरूरत मकान की उपलब्धता का इस वक्त क्या हाल है, इसका अंदाजा सरकारी आवासीय योजनाओं में आवेदकों की संख्या से होता रहा है। पर इन योजनाओं में फ्लैट के नाम पर काल कोठरी या मुर्गी के दड़बे जैसा घर देने की जो परंपरा दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने पिछली दो योजनाओं से शुरू की, उसका नतीजा यह...
More »टीवी चर्चाओं के अर्धसत्य और झूठ - मृणाल पाण्डे
शीत सत्र समाप्त हुआ और विपक्ष द्वारा ठप की गई संसद की कार्यसूची में दर्ज तीन तलाक का मुद्दा राज्यसभा में लटका रह गया। हो-हल्ले के चलते लगातार स्थगित किए जाने को मजबूर सदन में मुल्तवी हुई यह बहस, संसद के बाहर खबरिया चैनलों पर आयोजित हुई और दर्शकों का ध्यान खींचती रही। बहस-विमर्श से किसी को खास शिकायत नहीं, लेकिन हर दल, तथाकथित सिविल सोसायटी और बौद्धिक क्षेत्रों के...
More »आदिवासी बनाएंगे सियासी दल, चुनाव से पहले समाज में हो रहा सर्वे!
मृगेंद्र पांडेय, रायपुर। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज एक नए राजनीतिक विकल्प की तलाश में निकल पड़ा है। विधानसभा चुनाव से दस महीने पहले सर्वआदिवासी समाज एक सर्वे कर रहा है, जिसमें यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या आदिवासी, पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों को एकजुट होकर गैर कांग्रेसी, गैर भाजपाई राजनीतिक पार्टी बनानी चाहिए। क्या आरक्षित वर्ग को नया राजनीतिक विकल्प तलाशना चाहिए? राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो पिछले तीन...
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