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खुले में शौच: तादाद में चालीस करोड़ की कमी लेकिन पड़ोसियों से पीछे

बीते पच्चीस सालों में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या कम करने की रफ्तार के लिहाज से भारत पड़ोसी नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान से पीछे है. यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1990 से 2015 के बीच खुले में शौच करने वालों की संख्या में 31 फीसदी की कमी हुई है जबकि पड़ोसी नेपाल में (56 प्रतिशत), पाकिस्तान(36 प्रतिशत), बांग्लादेश(33 प्रतिशत) में यह रफ्तार...

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ग्रीस मॉडल पर भारी हमारा एक छोटा-सा राज्य - सईद नकवी

हाल ही में एक अंग्रेजी अखबार में पहले पन्ने पर छपी एक तस्वीर ने मेरा ध्यान खींचा। उसमें अगरतला में एक इंटरनेट गेटवे के शुभारंभ अवसर पर केंद्रीय संचार एवं आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद को त्रिपुरा के कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री माणिक सरकार के साथ गर्मजोशी से हाथ मिलाते दिखाया गया था। इस तस्वीर के साथ अखबार हमें सूचित कर रहा था कि अपराध-नियंत्रण के मामले में त्रिपुरा का रिकॉर्ड लाजवाब रहा...

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गांवों की अनदेखी से विकास असंभव- उमेश चतुर्वेदी

उदारवादी अर्थव्यवस्था के इस दौर में भी भारतीय अर्थव्यवस्था यदि खेती-किसानी और उसके जरिये जीने वाले गांवों पर टिकी हुई है, तो मान लेना होगा कि हजारों वर्षों से चली आ रही भारतीयता की परंपरा अब भी बनी हुई है। आर्थिक नीतियों की कामयाबी और नाकामी का पैमाना अब अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों फिच और मूडी की रिपोर्टों और उनके आकलन के आधार पर तय होता है। हाल ही में मूडी...

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15 दिन में 60 हजार किसान क्रेडिट कार्ड नहीं बना पाए तो रोका वेतन

बलौदाबाजार। 15 दिन में 60 हजार क्रेडिट किसान कार्ड नहीं बनाने पर ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों का जून माह का वेतन रोक दिया गया। इससे नाराज ग्रामीण कृषि विकासखंड अधिकारी संघ एवं कृषि स्नातक शासकीय कृषि अधिकारी संघ के अंतर्गत आने वाले 6 विकासखंडों के सैकड़ों अधिकारियों ने कृषि उप संचालक कार्यालय का घेराव कर जमकर नारेबाजी की। 20 जुलाई तक वेतन भुगतान नहीं होने पर अनिश्चितकालीन हड़ताल की चेतावनी...

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जाति के आंकड़ों से डरने वाले- योगेन्द्र यादव

जाति का भूत देखते ही अच्छे-अच्छों की मति मारी जाती है। या तो लोग बिल्ली के सामने आंख मूंदे कबूतर की तरह हो जाते हैं, और यह खुशफहमी पालने लगते हैं कि जाति है ही नहीं। या फिर उनकी गति सावन के अंधे की तरह हो जाती है, और उन्हें हर बात में जाति ही जाति नजर आने लगती है। सरकार द्वारा सामाजिक-आर्थिक-जाति जनगणना के जाति संबंधी आंकड़े सार्वजनिक न करने...

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