‘गोदान’ के प्रकाशन के 75 साल पूरे हो गए हैं लेकिन भारत का देहाती जीवन आज भी लगभग उन्हीं समस्याओं और चुनौतियों से घिरा दिखता है जिनका वर्णन मुंशी प्रेमचंद के इस कालजयी उपन्यास में हुआ है. गोपाल प्रधान का आलेख सन 1935 में लिखे होने के बावजूद प्रेमचंद के उपन्यास 'गोदान' को पढ़ते हुए आज भी लगता है जैसे इसी समय के ग्रामीण जीवन की कथा सुन रहे हों....
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मप्र में लोकायुक्त को और अधिकारों की जरूरत
धर्मेद्र पैगवार, भोपाल। जब पूरे देश में जनलोकपाल को लेकर आम जनता सड़कों पर है, तब सूबों में तैनात लोकायुक्त संगठनों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। मप्र में लोकायुक्त संगठन तो है, लेकिन खुद यहां के लोकायुक्त कई साल पहले इस संगठन को बिना दांत का शेर कह चुके हैं। लोकायुक्त जस्टिस प्रकाश प्रभाकर नावलेकर कहते हैं कि यहां संगठन तो है, लेकिन कुछ ऐसे अधिकारों की...
More »सुनो, मध्य वर्ग की आहट -शशि भूषण
अन्ना हजारे, सिविल सोसाइटी, सरकार और सर्वोपरि संसद समाजशास्त्री व अर्थशास्त्री जो लोग इन बड़े समाचारों के बीच उनके भीतरी आशय जानना चाहते हैं, उनके के लिए ये सब बहस के मुद्दे हो सकते हैं, किंतु आम लोग, लोकपाल या जन लोकपाल में कुछ फर्क भी है, यह जानने की जरूरत नहीं समझते. उन्हें बस इतना पता चल गया है कि एक पर एक मंत्री एक से आला भ्रष्टाचार के नये कीर्तिमान...
More »निर्णायक प्रतिरोध का समय : चेतन भगत
हम सभी का सामना किसी ऐसे ‘अंकल’ से हुआ होगा, जो समय-समय पर हमें याद दिलाते रहते हैं कि इस देश का भगवान ही मालिक है। उनकी हर बात का लब्बोलुआब यह रहता है कि भारत एक भ्रष्ट और नाकारा देश है, जहां जिंदगी गुजारना मुश्किल है। वे हमें बताते हैं कि आरटीओ से लेकर राशन की दुकान और नगर पालिका तक हर सरकारी अधिकारी घूस खाता है। वे हमें यह भी...
More »ढोंगी बाबाओं पर नकेल की तैयारी, जादू-टोना विरोधी विधेयक महाराष्ट्र विधानसभा में पेश
मुंबई. जादू-टोना के नाम पर लोगों को ठगने वाले ढोंगी बाबाओं के खिलाफ कार्रवाई का रास्ता साफ करने वाला जादू-टोना विरोधी विधेयक बुधवार को विधानसभा में पेश हो गया। सामाजिक न्याय मंत्री शिवाजीराव मोघे ने यह विधेयक पेश किया था। मानसून सत्र खत्म होने से पहले इसके पास होने की उम्मीद जताई जा रही है। इस दौरान अगर विधान परिषद में भी विधेयक पास हो जाता है, तो यह कानून अमल में आ...
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