एक बार फिर जर्मनी में पर्यावरण व जलवायु के मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत हो चुकी है। और फिर से ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा, जिससे यह कहा जा सके कि इस बार हम किसी बड़े निर्णय पर पहुंच पाएंगे। असली बाधा इसलिए है कि दुनिया को गरम होने से बचाने का मुद्दा दरअसल उद्योगों से जुड़ा हुआ है। अगर हम ‘ग्लोबल वार्मिंग' को रोकना चाहते हैं,...
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आर्थिक सुधारों की कठिन राह पर-- एन के सिंह
आर्थिक फैसले पूरी स्फूर्ति से लिए जा रहे हैं। भले ही अभी हम नोटबंदी और जीएसटी की बहस में उलझे हुए हों, मगर हाल ही में सरकार ने अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए कई आर्थिक उपायों की घोषणा की है। ये कई लक्ष्यों को हासिल करने के इरादे सेप्रेरित हैं। एक कहावत है कि बुराई को मजबूती तब मिलती है, जब हम कोई फैसला नहीं कर पाते या दूसरों...
More »जलवायु परिवर्तन से खतरे में इंसान --- डॉ गोपाल कृष्ण
जलवायु परिवर्तन की समस्या अब मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा संकट बन चुकी है. दुनियाभर में करोड़ों लोग बीमारियों के शिकार हैं, फसलों की उत्पादकता पर नकारात्मक असर हो रहा है और आम जन-जीवन में कई तरह की एलर्जी की अवधि बढ़ती जा रही है. इसके बावजूद विभिन्न देशों ने इस चुनौती को लेकर लापरवाही का ही नहीं, बल्कि इसे नकारने तक की प्रवृत्ति अपनायी हुई है. संयुक्त...
More »प्रदूषित हवा के खिलाफ कदम-- प्रार्थना बोरा
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि 2016 के अंत में पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाई-ऑक्साइड के अनुपात में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2015 में यह वृद्धि पिछले दस वर्षों के औसत वृद्धि अुनपात से लगभग 50 फीसदी ज्यादा दर्ज हुई थी। एक अन्य रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की भी है, जो और भयावह निष्कर्ष पर पहुंचती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2016 में...
More »विषमता की बढ़ती खाई-- जयराम शुक्ल
मुट्ठी भर गोबरी का अन्न लेकर लोकसभा पहुंचे डॉ राममनोहर लोहिया ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूसे कहा- लीजिए, आप भी खाइए इसे, आपके देश की जनता यही खा रही है। पिछले दिनों जब विश्व के भुखमरी सूचकांक (हंगर इंडेक्स) में 119 देशों में भारत के सौवें स्थान पर होने के बारे में पढ़ा तो 1963 का नेहरू-लोहिया का वह प्रसंग जीवंत हो गया, जिसमें लोहिया ने तीन आने बनाम पंद्रह...
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