दिसंबर बीतते हुए पिछले कई वर्षों का लेखा-जोखा आप से आप करने लगता है. ब्रेक्जिट, अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव, सीरिया का गृहयुद्ध, नोटबंदी, राष्ट्रगान, राष्ट्रभक्ति, इन सबका हिसाब लगाने के बाद भी एक दिसंबर बचा रहता है, जो कई वर्षों से नहीं बीता. न वह नया होता है न पुराना. वह बस टंग गया है दीवार पर. उसकी तारीखें बदलती हैं, लेकिन उसकी तासीर नहीं बदलती. यह हमेशा उतना ठंडा...
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नोटबंदी के दौर में बोलेरो शादी-- विभूति नारायण राव
पिछले चालीस दिनों में नोटबंदी ने देश की तरह मुझे भी तरह-तरह के अनुभव दिए हैं। देश दो खेमों मे बंटा दिख रहा है। एक तरफ देशभक्त हैं, जिनकी बांछें खिली हुई हैं और जो बता रहे हैं कि बस देखते रहिए, देश से काला धन, जाली नोट और आतंकवाद खत्म होने ही वाले हैं। यह अलग बात है कि समय बीतने के साथ ही उनकी मुस्कान धीरे-धीरे कमजोर पड़ती...
More »स्विस बैंक, टैक्स हेवन और कालाधन- यहां पढ़िए अपने सवालों के जवाब !
विदेशी बैंकों में भारतीयों ने अपना कितना धन छुपाकर रखा है ? क्या 462 अरब डॉलर जैसा कि ग्लोबल फाइनेंसियल इंटिग्रिटी नामक संस्था की रिपोर्ट में दर्ज है या 500 अरब डॉलर जैसा कि सीबीआई ने कहा ? क्या विदेशों में जमा सारा काला धन भारत आ जाये तो सचमुच बहुत सालों तक किसी टैक्स की आवश्यकता नहीं रहेगी और देश के हर गाँव को दस करोड़ रुपये (16 लाख...
More »नोटबंदी के एक महीने का सच-- कन्हैया सिंह
आठ नवंबर को शुरू हुए 500 व 1000 रुपये के नोटों के डीमॉनेटाइजेशन (जिसे आम भाषा में नोटबंदी कहा जा रहा है) के बाद से देश में जो हो रहा है, उसका विश्लेषण काफी कठिन है। यही वजह है कि हर अर्थशास्त्री इसे अलग ढंग से देख रहा है। इसके नतीजों का आकलन अलग ढंग से कर रहा है। ऐसे मौकों पर हर अर्थशास्त्री अपने ‘परसेप्शन' और ‘स्पैक्यूलेशन' यानी अपनी...
More »कितना हमला, कितना जुमला!-- अनिल रघुराज
सड़क से संसद तक फैली अशांति के बीच केंद्र सरकार की गति सांप और छछुंदर जैसी हो गयी है. न उगलते बन रहा है और न निगलते. एक मुश्किल सुलझाने निकले तो बड़ी मुसीबत गले पड़ गयी. दरअसल, पिछले महीने दीवाली के चंद दिन पहले ही केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने आंकड़ा जारी किया कि देश की 129.5 करोड़ की आबादी में से मात्र 3.65 करोड़ या 2.8 प्रतिशत लोग...
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