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प्रदेश में रोज 5 हजार मीट्रिक टन कचरा, निष्पादन सिर्फ 14 प्रतिशत का

भोपाल। अमित देशमुख। केंद्र सरकार के स्वच्छता अभियान के स्टेटस रिपोर्ट में मध्यप्रदेश कई मामलों में पिछड़ रहा है। रिपोर्ट की जो बात सबसे ज्यादा हैरान करती है वह है प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान के दो साल होने के बाद भी मध्यप्रदेश में प्रतिदिन होने वाले 5079 मीट्रिक टन के निष्पादन का प्रतिशत महज 14 है। आधे वॉर्ड से ही उठ रहा है कचरा केंद्र सरकार द्वारा मई व जून 2015 में...

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नवाचारों से ज्यादा जरूरी है बिजली व्यवस्था में सुधार

मनीष वैद्य। बिजली के क्षेत्र में मध्य प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाना और उपभोक्ताओं को बेहतर गुणवत्तापूर्ण सेवाएं देना, मप्र बिजली वितरण कंपनी और इससे जुड़े विभागों का घोषित उद्देश्य है। मगर खेद है कि ये सब मिलकर भी इस एक उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रहे। आंकड़ों का मायाजाल बताता है कि बिजली संबंधी व्यवस्थाएं सुधारने के लिए बीते कुछ सालों में करोड़ों रुपए खर्च किए गए। साथ ही...

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एंथ्रोपोसीन मतलब मानव युग -- बिभाष

वैज्ञानिकों के एक वर्ग का मत है कि आइस एज के बाद बारह हजार वर्षों का स्थिर जलवायु का दौर होलोसीन, जिसके दौरान मानव सभ्यताओं का विकास हुआ, अब समाप्त हो चुका है. इस दौर की समाप्ति का कारण है मानव जाति का धरती की जलवायु में जबरदस्त हस्तक्षेप. वैज्ञानिक नये दौर को एक नया नाम 'एंथ्रोपोसीन' देना चाहते हैं. द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने तो वर्ष 2011 में ही...

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अंधविश्‍वास का इतना खौफ कि गांव के किसी घर में शौचालय नहीं

गुना। ध्रुव झा। जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां पक्का मकान तो दूर घरों में शौचालय तक नहीं हैं। यहां के कई जमीदार परिवार लखपति हैं। घरों में चार पहिया वाहन, एलईडी, फ्रिज, कूलर और बाइक हैं, लेकिन गांव के लोग संपन्न् होने के बाद भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। इसकी वजह भी बड़ी अजीबोगरीब है। दरअसल, यहां के लोग अंधविश्वास की वजह से घरों...

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मिट्टी ही मिट गई तो कहां खड़े होंगे हम - अनिल प्रकाश जोशी

मिट्टी से जुड़ी बहुत ही कहावतें हैं। इनमें एक है मिट्टी के मोल बिक जाने का मुहावरा, जो अब गलत साबित हो रहा है। अब जब मिट्टी तेजी से गायब हो रही है, तो हमें इसकी कीमत भी समझ में आ रही है। मिट्टी के खोने का सबसे बड़ा प्रमाण मानसून में मिलता है। वर्षा जल के पड़ते ही नदी, नाले, गाढ़-गदेरे जो अपना रंग बदल देते हैं, और हम...

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