क्या इसे महज एक संयोग माना जाए कि देश की तकरीबन हर पार्टी और राजनीति में आकंठ निमग्न शीर्ष नेता के कुटुंबों के भीतर और पार्टी के असंतुष्टों के बीच की भीषण तनावमय टूट इन दिनों शर्मनाक झगड़ों में तब्दील हो-होकर चौरस्तों पर बिखर रही है? एक न एक दिन तो यह होना ही था। वजह यह कि गए कई दशकों में जवान होता लोकतंत्र हमारे बीच राजनीति से अर्थनीति...
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एमपी -- डेंगू को लेकर हाई अलर्ट, लेकिन 22 जिलों में सरकारी जांच के इंतजाम नहीं
भोपाल। शशिकांत तिवारी। रायसेन के प्रकाश वंशकार (20) को 20 दिन से बुखार आ रहा था। दवा लेने के बाद भी बुखार कम नहीं हुआ। खून की जांच में भी कुछ पता नहीं लगा। तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगी तो एम्स भोपाल में जांच कराई जहां प्रकाश को डेंगू की पुष्टि हुई। हालांकि प्रकाश अब ठीक है लेकिन महीने भर से ज्यादा समय तक बुखार रहने से उसकी हालत काफी खराब...
More »दलाली ऐसी कि जाती ही नहीं-- अनिल रघुराज
अपने समाज में हर तरफ दलाली का बोलबाला है. जिधर भी देखिये, दलाल ही दलाल. पेशे की दलाली को छोड़ दीजिये. अब तो हर पेशे में दलालों ने ठौर बना लिया है. जो जितना बड़ा दलाल है, वह उतना ही रसूख और दौलत वाला है. लेकिन, किसी को गलती से भी दलाल कह दो, तो उखड़ कर आपको जाने क्या-क्या कह डालता है. कारण, दलाली के लिए छवि का बड़ा...
More »हम किसे गरीब माने-- अवधेश कुमार
हमारे-आपके लिए कौन गरीब है इसे अपने आसपास पहचानना कठिन नहीं है। लेकिन जब सरकार की ओर से गरीबों की औपचारिक पहचान की बात आती है तो समस्या बढ़ जाती है। वास्तव में भारत में कौन गरीब है इसके निर्धारण का प्रश्न एक जटिल पहेली की तरह हमारे सामने लंबे समय से खड़ा है। गरीबी तय करने को लेकर समय-समय पर कुछ मानक निर्धारित किए गए और उनके आधार पर...
More »कचरे से जूझते हमारे शहर-- फिरोज वरुण गांधी
हमारे शहर संक्रामक रोगों के कब्जे में हैं। राजधानी दिल्ली तक इनसे नहीं बची है। डेंगू, चिकनगुनिया, बर्ड फ्लू, टायफायड, स्वाइन फ्लू जैसे तमाम रोग तेजी से फैल रहे हैं। मैं खुद पिछले दो वर्षों में चिकनगुनिया व स्वाइन फ्लू का शिकार बन चुका हूं। इन बीमारियों का फैलना कोई नई प्रवृत्ति भी नहीं है। 23 सितंबर, 1994 का दिन याद कीजिए। उस दिन सूरत के कई हिस्सों में न्यूमोनिक प्लेग...
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