दिल्ली में प्रदूषण का स्तर आज बढ़ गया और शहर की वायु गुणवत्ता दर्ज करने वाले ज्यादातर निगरानी केन्द्रों में इसे गंभीर श्रेणी में बताया गया। बहरहाल 24 घंटे की औसत गुणवत्ता खराब रही क्योंकि पीएम (पार्टीकुलेट मैटर) 2 . 5 और पीएम 10 सुरक्षित सीमा से करीब तीन गुना अधिक रहे। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया कि शांत वायु की हलचल और बढ़ी हुई आर्र्द्रता...
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ग्लोबल से अहम हमारा लोकल वार्मिंग- अतुल चतुर्वेदी
जिन दिनों अघाए हुए देश ग्लोबल वार्मिंग पर पैंतरे बदल रहे हैं, उन्हीं दिनों हम लोेकल वार्मिंग से जूझ रहे हैं। यूं भी हमारा देश एक गरम देश है और तू-तू मैं-मैं हमारा बहुत पुराना शगल है। विश्व के नेताओं की चिंता भले कार्बन उत्सर्जन को लेकर हो, लेकिन हमारी चिंताएं एक-दूसरे के मुंह पर कालिख पोतने तक सीमित हैं। हम कालिख मलने और कपड़े फाड़ने से अभी ऊपर नहीं उठ...
More »आपदा राहत की उलझी कड़ियां-- शैलेन्द्र चौहान
भारत में लोगों को आपदा से बचाना या तत्काल राहत पहुंचाना किसकी जिम्मेदारी है? पिछले पांच दशक से सरकार भी इस यक्ष प्रश्न से जूझ रही है। दरअसल, आपदा प्रबंधन तंत्र की सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों को कुदरती कहर से बचाने की जिम्मेदारी कई महकमों पर है। जब लोग बाढ़ में डूब रहे होते हैं, भूकंप के मलबे में दब कर छटपटाते हैं या फिर ताकतवर तूफान...
More »पौधे उगाने वाली मशीन की खरीदी में गोलमाल
गंगेश द्विवेदी/रायपुर। कृषि आधुनिकीकरण के नाम पर पौधे उगाने वाली मशीन की खरीदी में गंभीर गड़बड़ियां की गई हैं। मशीनों की खरीदी के लिए जारी टेंडर में केवल दो कंपनियों ने हिस्सा लिया। दोनों कंपनियों के रेट में बहुत कम अंतर है। आरटीआई कार्यकर्ता उचित शर्मा का आरोप है कि दो बड़ी खरीदी में केवल तीन कंपनियों ने रिंग बनाकर काम हथिया लिया। इस मामले में संचालनालय के अधिकारियों की...
More »चेन्नई बाढ़ : एक मानव निर्मित त्रासदी
चेन्नई की बाढ़ जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों का एक भयावह उदाहरण तो है ही, इससे हुई तबाही ने मानव समाज की खतरनाक गलतियों के नतीजों को भी रेखांकित किया है. हाल के वर्षों में उत्तराखंड, कश्मीर समेत देश के विभिन्न इलाकों में बाढ़ की त्रासदी का कहर लगातार बढ़ा है. तेज शहरीकरण और विकास की आपाधापी में सरकार और समाज प्राकृतिक तंत्रों को बेतहाशा बरबाद कर रहे हैं. नदियां...
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