-डाउन टू अर्थ, कोरोनावायरस (कोविड-19) बीमारी की वजह से हमारे समाज की असमानता सामने नहीं आई है। मुक्त बाजार काल में इसे अस्तित्व के खतरे के तौर पर पहले ही स्वीकार किया जा चुका है। कोरोनावायरस की वजह से यह जरूर स्पष्ट हुआ है कि आर्थिक रूप से हाशिए पर खड़े लोगों को स्वास्थ्य आपातकाल का सामना कैसे करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, अगर हम अमेरिका की बात करें तो कई...
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कोरोना वायरस से भारत में पहली मौत, आंध्र प्रदेश भी पहुंची बीमारी, दिल्ली-हरियाणा में महामारी घोषित
जनज्वार, कर्नाटक के कलबुर्गी में 76 वर्षीय एक बजुर्ग की मौत हो गई है जो कोरोनावायरस से पीड़ित था. गुरुवार को अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी. बुजुर्ग की मौत मंगलवार को ही हो गई थी, लेकिन उसके कोरोना से संक्रमित होने की पुष्टि गुरुवार को हुई. यह व्यक्ति 29 फरवरी को सऊदी अरब से भारत लौटा था और हैदराबाद एयरपोर्ट पर उसकी स्क्रीनिंग भी हुई थी. उस वक्त उसमें कोरोना के...
More »बीमार की बीमारी: भारत, वायरल रोगों का सबसे बड़ा शिकार
-इंडिया टूडे, भारत में स्वाइन फ्लू के ताजा इतिहास पर नजर डालनी चाहिए ताकि हम समझ सकें कि कोरोना या कोविड-19 हमारा क्या हाल कर सकता है, जहां का स्वास्थ्य ढांचा वियतनाम और ब्राजील से भी पिछड़ा है. स्वाइन फ्लू इक्कीसवीं सदी की पहली घोषित आधुनिक महामारी थी. भारत में 2009 से 2019 के बीच स्वाइन फ्लू से 10,614 मौतें हो चुकी हैं और 1.37 लाख लोग बीमार हुए. यह तबाही अभी...
More »आर्थिक निराशा में घिरा बहुसंख्यकवादी देश बन गया है भारतः मनमोहन सिंह
-बीबीसी हिंदी, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक संपादकीय लेख में कहा है कि भारत उदारवादी लोकतंत्र के वैश्विक उदाहरण से आर्थिक निराशा में घिरा बहुसंख्यकवादी देश बन गया है. द हिंदू में प्रकाशित संपादकीय में मनमोहन सिंह ने कहा कि वो भारी मन से ये बात लिख रहे हैं. मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत इस समय सामाजिक द्वेष, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य महामारी के तिहरे ख़तरे का सामना...
More »जीवन भक्षक अस्पताल-1: देश के अस्पतालों में हर एक मिनट पर एक नवजात शिशु की मौत
इस देश में जच्चा-बच्चा कैसे सुरक्षित रह सकते हैं, जब स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर अस्पताल तक लोगों को समय से उपचार नहीं मिल रहा। संस्थागत प्रसव के बाद एक भी बच्चे की मौत तक व्यवस्था पर सवाल जिंदा बना रहेगा। रोजाना जन्मने वाले कुल शिशुओं मे 50 फीसदी की हिस्सेदारी अकेले आठ ईएजी राज्य करते हैं। यहां स्थितियां बेहद जर्जर हैं। वहीं अन्य राज्यों में भी स्थिति को संतोषजनक नहीं...
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