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आलू : तय होगा न्यूनतम समर्थन मूल्य

कोलकाता. आलू की खेती करनेवाले किसानों को घाटे से बचाने के लिए राज्य सरकार ने नयी पहल शुरू करने का फैसला किया है. सरकार की ओर से किसानों को आलू के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रदान करने का फैसला किया है, जिससे किसानों के हितों की रक्षा की जा सके. बाजार में आलू की कीमत सातवें आसमान पर है, लेकिन इससे किसानों को कोई खास फायदा नहीं हो रहा है,...

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छत्तीसगढ़ में फिर लहलहाएगी दुबराज, विष्णुभोग की फसल

दिलीप साहू, रायपुर। दो दशक पहले तक छत्तीसगढ़ की पहचान रहे दुबराज, जवाफूल, बादशाह भोग, विष्णु भोग, चिन्नौर जैसे सुगंधित धान अब विलुप्ति के कगार पर हैं। हाईब्रीड व अधिक उपज देने वाली स्वर्णा, एमटीयू 1010 जैसी किस्मों के विस्तार के साथ परंपरागत क्षेत्रीय सुगंधित धान की किस्में गांवों से ज्यादातर समाप्त हो चुकी हैं। विलुप्त होते ऐसे पारंपरिक सुगंधित धान की 30 से अधिक वेराइटी को फिर से सहेजने...

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ओझल आदिवासी समाज- विनोद कुमार

जनसत्ता 26 अगस्त, 2014 : आदिवासी समाज के बारे में इधर हमारी दृष्टि बदली है। बावजूद इसके आदिवासी बहुल इलाकों के बाहर आदिवासी समाज के बारे में अब भी एक कौतूहल का भाव रहता है। इस परिप्रेक्ष्य में यह जानना दिलचस्प होगा कि गैर-आदिवासी समाज आज भी आदिवासी समाज को किस रूप में देखता है। राजनेताओं की नजर में आदिवासी समाज की अहमियत क्या है, इसे हम कुछ उदाहरणों से...

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रियायत किसे और मुनाफा किसका? - विजय सिंघवी

भाजपा की राष्ट्रीय परिषद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में विकसित देशों के दबाव के आगे नहीं झुकने के अपने निर्णय को जायज ठहराया। उनका तर्क था कि हम खाद्यान्न सबसिडी में ज्यादा कटौती करते हुए देश के लाखों छोटे किसानों की आजीविका को जोखिम में नहीं डाल सकते थे। उनकी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने मोदी के इस विचार का पुरजोर स्वागत किया। जहां तक...

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अपनी सभ्यता की शर्तों पर- रमेशचंद्र शाह

जनसत्ता 15 जुलाई, 2014 : तात्कालिक आवश्यकता इस समाज में ही अतर्निहित, लेकिन दबी-घुटी मूल्य चेतना और आत्म-ज्ञान को उभारने-जगाने की है। फिलहाल लक्षण कुछ ऐसे ही प्रतीत हो रहे हैं कि नया राजनीतिक नेतृत्व अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में इस मानी में ज्यादा संवेदनशील और जनोन्मुखी होगा। अवसरवादियों-चाटुकारों, नकलचियों और अल्पसंख्यक-तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दंभी पुण्यात्माओं का अभयारण्य नहीं, जो कि अपने ही देश को उपनिवेश की तरह...

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