-डाउन टू अर्थ, यदि किसी व्यक्ति को एक बार कोविड-19 का मामूली संक्रमण हो जाता है, तो उसके शरीर में लम्बे समय तक इस बीमारी के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है। ऐसे में इस बीमारी के दोबारा होने की सम्भावना काफी कम हो जाती है। यह जानकारी हाल ही में सेंट लूइस के वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन द्वारा किए एक शोध में सामने आई है, जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल...
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“मोदी ने देश को घुटनों पर ला दिया”: टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा
-आउटलुक, तृणमूल काग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा मोदी सरकार की प्रखर आलोचक हैं। हाल के चुनावी नतीजों, केंद्र सरकार के सात साल के कामकाज, मौजूदा दौर में उसकी छवि, कोविड की दूसरी लहर और केंद्र-राज्य संबंध जैसे विषयों पर आउटलुक के प्रीता नायर ने उनसे बात की। मुख्य अंश: हाल के वर्षों में केंद्र-राज्य संबंधों को आप कैसे देखती हैं? इस सरकार ने संघीय ढांचे को तार-तार कर दिया है। इसके दो कानूनों को लीजिए- एनआइए और...
More »चार बातें, जो तय करेंगी कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड की दूसरी लहर के झटके से कैसे उबरेगी
-द प्रिंट, कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के कोप ने हम सबको सकते में डाल दिया है. वास्तव में इसने जबरदस्त दुख और पीड़ा पहुंचाई है. पिछले कुछ दिनों से कोविड संक्रमण के नये मामलों में कमी आने लगी है, जिससे उम्मीद को सहारा मिला है. हालांकि दूसरी लहर अभी खत्म नहीं हुई है और नये मामलों में 2.4 प्रतिशत की कमी आई है, जिससे उम्मीद बंधी है कि अर्थव्यवस्था अगली तिमाही...
More »'पक्ष'कारिता: आज मर रहे पत्रकारों को बचाइए, उम्मीद बची तो कल पत्रकारिता भी बच जाएगी
-न्यूजलॉन्ड्री, कोविड-19 के कसते शिकंजे के आलोक में हिंदी के ज्यादातर अखबारों के अचानक बदले चरित्र और जनपक्षधर रिपोर्टिंग पर पिछले अंक में एक सरसरी तौर पर इशारा था, हालांकि वह स्तम्भ बंगाल चुनाव पर केंद्रित था. अखबारों का आलोचनात्मक रुझान अब भी कायम है, बल्कि और तीखा हुआ है. अच्छी बात यह है कि छोटे-छोटे शहरों के अखबारी संस्करणों और छोटे प्रकाशनों (मुद्रित और ऑनलाइन) में जनता के दुख-दर्द की...
More »दूसरी लहर ग्रामीण जीवन पर कहर बरपा रही है, क्या यह ग्रामीण आजीविका को भी प्रभावित करेगी?
इस साल मार्च के बाद से हर रोज कोविड-19 के नए मामलों और मौतों में वृद्धि होने के बाद मीडिया ने रिपोर्ट (कृपया यहां और यहां क्लिक करें) किया कि प्रवासी कामगार अपने प्रवास स्थलों से मूल स्थानों (यानी मूल स्थानों) पर वापस लौट रहे हैं. शहरों और बड़े औद्योगिक कस्बों में जहां समाज के हाशिए के वर्गों से अनौपचारिक और कम कुशल श्रमिक मौसमी रूप से प्रवास करते हैं,...
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