सत्तर के आखिरी दशक में मेरी मुलाकात अस्सी साल के बुजुर्ग शिक्षाविद श्रीमान जीवन नाथ दर से हुई थी. मैं जिस विद्यालय की आठवीं-नवीं कक्षा में पढ़ता था, ये कभी वहीं प्राचार्य हुआ करते थे. कहते हैं कि जब बिहार सरकार ने भारत सरकार की सलाह पर इस प्रयोगात्मक विद्यालय खोलने का निर्णय लिया, तो पंडित नेहरू ने उनसे यहां आने का आग्रह किया था. शांतिनिकेतन के तर्ज पर बिना...
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कौन थीं ‘फायर ब्रांड’ पत्रकार गौरी लंकेश, जिनके तर्कवादी विचार ने बना दिये उनके दुश्मन?
बेंगलुरु : बेंगलुरु में मंगलवार रात ‘फायर ब्रांड' पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गयी. उनकी हत्या उनके आवास के बाहर हुई. गौरी लंकेश की पहचान एक व्यवस्था विरोधी पत्रकार की थी, जो गरीबों और दलितों की हितैषी थीं. साथ ही उन्हें हिंदुत्वादी राजनीति का कट्टर विरोधी माना जाता था. कन्नड़ पत्रकारिता में कुछ महिला संपादकों में शामिल गौरी प्रखर कार्यकर्ता थीं जो नक्सल समर्थक थीं और वामपंथी विचारों...
More »अंधविश्वास व अंधभक्ति का बाबा -- आशुतोष चतुर्वेदी
जो व्यक्ति बड़ी-बड़ी विदेशी कारों में चलता हो, फिल्में बनाता हो, उनमें हीरो की भूमिका भी खुद ही निभाता हो, खुद को बाबा कम रॉक स्टार अधिक मानता हो, जिस पर रेप का आरोप सिद्ध हो गया हो, जिसकी जीवनशैली राजा महाराज की तरह हो, जिसमें आध्यात्मिक गुरू का कोई तत्व न हो, ऐसा व्यक्ति क्या बाबा कहलाने लायक है? रेप के आरोप में राम रहीम को दोषी करार...
More »लोकतंत्र और पूंजी के रिश्ते-- मृणाल पांडे
यह कोई राज नहीं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने चुनाव प्रचार के दिनों से ही अपने धुर दक्षिणपंथी विचारों और उग्र समर्थकों की भीड़ को लेकर विवादों से घिरे रहे हैं. उनकी बेलगाम बयानबाजी को लेकर देश के उदारवादी लोगों और खुद व्हाॅइट हाउस के स्टाफ की बेचैनी अब बढ़ती जा रही है. हाल में वर्जीनिया प्रांत के शारलौट्सविल शहर में (गुलामी प्रथा तथा नस्लवाद के पक्षधरों के प्रतीक)...
More »भीड़तंत्र से शोरतंत्र तक-- शशि शेखर
पिछले एक हफ्ते से आप सिर्फ बिलखते लोगों की तस्वीरें देख रहे होंगे। गोरखपुर में अकाल काल के गाल में समा जाने वाले नौनिहालों के रोते-चीखते परिजन, नोएडा में जेपी, आम्रपाली सहित तमाम बिल्डर्स के शिकार मध्यवर्गीय लोग, कर्ज-माफी की घोषणा के बावजूद अपनी जान देने पर मजबूर किसान, केरल में सांप्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों के परिजन...। क्या गुजरे 70 सालों में हमने यही कमाया है? यह गम और गुबार...
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