जनसत्ता 4 फरवरी, 2013: गार्गा चटर्जी इस घड़ी आशीष नंदी होना आफत को गले लगाना है। तकनीक के इस ताबड़तोड़ दौर में जहां बोले गए शब्द ध्वनि की रफ्तार को पछाड़ रहे हों, उनका अर्थ पीछे छूटता जा रहा, तो यह देख कर जरा भी अचरज नहीं होता कि साहित्य के एक समारोह में आशीष नंदी के ‘जातिसूचक’ शब्दों को कुछ विवाद प्रेमी लोग लपक लें। असल में सांप्रदायिकता के छद्म विरोध...
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परमार्थ में पूंजी- सुभाष गताडे
जनसत्ता 5 नवंबर, 2012:खबर है कि सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में भारतीय कंपनी अधिनियम में संशोधन का विधेयक पेश करेगी। कहा जा रहा है कि कॉरपोरेट क्षेत्र की सामाजिक जिम्मेदारी को प्रस्तुत अधिनियम में शामिल करने को लेकर लंबे समय से चल रही चर्चाओं, बहस-मुबाहिसे की परिणति संशोधित अधिनियम की धारा-135 में दिखाई देगी। यह प्रस्तावित किया जा रहा है कि हर वह कंपनी, जिसकी खालिस कीमत पांच सौ करोड़...
More »खुदरा कारोबार के मिथक- सुभाष गताडे
जनसत्ता 4 अक्टुबर, 2012: भारत सरकार का दावा है कि खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजीनिवेश की राह खोलने से छह सौ अरब डॉलर तक पूंजी यहां पहुंचेगी। दूसरी तरफ के आलोचक इस तरह का अनुमान पेश कर रहे हैं कि वालमार्ट और उस जैसीकंपनियों के आने से कितने लाख लोग बेरोजगार होंगे, आदि। लगता है दोनों पक्षों की तरफ से छवि की लड़ाई चल रही है। कुल खुदरा कारोबार में आज...
More »लूट की छूट- आशीष खेतान
छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक संसाधनों का अकूत भंडार है, लेकिन ऐसा लगता है कि इसका फायदा सिर्फ उन्हीं लोगों को हो रहा है जिन पर मुख्यमंत्री रमन सिंह की कृपादृष्टि है. आशीष खेतान की रिपोर्ट. साल 2011 की बात है. दीवाली का मौका था. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में चर्चित अखबार ‘पत्रिका’ के स्थानीय संपादक गिरिराज शर्मा के पास एक विशेष उपहार पहुंचा. राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह के कार्यालय की तरफ से...
More »ये सब तो होना ही था- रविभूषण
वित्तीय पूंजी के रूप-स्वरूप, चाल-चलन से अपरिचित अनजान व्यक्ति ही आज की राजनीति से किसी सार्थक उम्मीद की आशा कर सकता है. अब राजनीति नव उदारवादी अर्थ व्यवस्था के मातहत है. जिसे ‘शिकागो स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स’ कहा जाता है, वह अमेरिकी अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन की आर्थिक दृष्टि और नीति के बाद ही प्रमुख रूप से अस्तित्व में आया. मिल्टन फ्रीडमैन नव उदारवादी अर्थशास्त्र के प्रमुख प्रणोता हैं. मनमोहन सिंह का अर्थशास्त्र...
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