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इस्मा ने चीनी उत्पादन अनुमान 12 लाख टन घटाया, 328 लाख टन रहने की लगाई उम्मीद

रूरल वॉइस, 27 अप्रैल चीनी उद्योग के शीर्ष संगठन इस्मा (इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन) ने चीनी उत्पादन के अपने पूर्वानुमान में 12 लाख टन की कटौती कर दी है। इस्मा ने अब अपने ताजा अनुमान में कहा है कि चालू विपणन वर्ष में देश में 328 लाख टन चीनी का उत्पादन होगा। उद्योग संगठन ने इससे पहले 340 लाख टन उत्पादन का अनुमान लगाया था। देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य...

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अन्य फसलों की तुलना में दालों की पैदावार लाभ दिखाने में विफल क्यों रही है

द वायर, 26 अप्रैल भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है और आयातक भी. भारत बड़ी मात्रा में दालों और खाद्य तेलों का आयात करता है, जिनका घरेलू स्तर पर आसानी से उत्पादन किया जा सकता है. कम घरेलू उत्पादन के कारण दालों की आयात मात्रा 9.44 प्रतिशत बढ़कर फसल वर्ष 2021-22 के दौरान लगभग 27 लाख टन हो गई, जो 2020-21 में 24.66 लाख टन थी. अपर्याप्त आपूर्ति...

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अप्रैल में इतिहास की सबसे भयानक हीटवेव को देखते हुए दक्षिण एशिया को तुरंत क्लाइमेट एक्शन की मांग उठानी चाहिए

द थर्ड पोल, 25 अप्रैल जब हीटवेव यानी प्रचंड लू हमारे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के रास्ते में बाधा बन जाए तो इसका मतलब है कि वक्त आ गया है कि हम सभी क्लाइमेट एक्शन यानी जलवायु कार्रवाई की मांग करें। यह बात मैं एक जलवायु वैज्ञानिक और दो छोटे बच्चों की मां के रूप में लिख रही हूं। मैं उस टीम की एक मेंबर रही हूं जिसने मार्च 2023 में इंटरगवर्नमेंटल पैनल...

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'डिजिटल सर्विलांस' के मसले पर हिंदुस्तानी मीडिया का रुख क्या है?

टाइम्स ऑफ इंडिया और दैनिक जागरण की खबरों में दिखा सर्विलांस के प्रति समर्थन!   पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ‘निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकारों की श्रेणी में रखा है। लेकिन, आए दिन ये खबरें आती रहती हैं कि आज सरकार की ओर से या सरकार की किसी ‘खास एजेंसी’ की ओर से राष्ट्रहित में या व्यापक जनहित में फ़लाँ व्यक्ति पर या किसी संस्था पर सर्विलांस किया गया! मीडिया...

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डाउन टू अर्थ खास: मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए हरित क्रांति जैसी गलती तो नहीं दोहरा रहे हैं हम!

डाउन टू अर्थ, 24 अप्रैल भारत की तरफ से संयुक्त राष्ट्र में दिए एक प्रस्ताव के आधार पर वर्ष 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स घोषित किया गया है। वैश्विक स्तर पर मोटे अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादक होने के नाते भारत इससे लाभान्वित हो सकता है। 1960 के दशक में हरित क्रांति के बाद से भारत ने गेहूं और धान पर ही ध्यान केन्द्रित कर दिया था। लेकिन, हाल के समय...

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