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कितने करहीन हैं करोड़पति! --- अनिल रघुराज

कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमूले सरस्वती; करमध्ये तू गोविंद, प्रभाते कर दर्शनम्।। सुबह-सुबह उठने पर अपने हाथों को इस तरह देखने का संस्कार हमें बड़ों से मिला है. लेकिन इसी 'कर' को अगर 'टैक्स' के संदर्भ में देखा जाये, तो पता चलता है कि जहां लक्ष्मी बहुतायत से बसती हैं, वहां करों का भयंकर टोटा है. क्या आप यकीन करेंगे कि 125.2 करोड़ की आबादी और 81.4 करोड़ मतदाताओं वाले देश...

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जीवन-मरण का वैश्विक प्रश्न--- निरंकार सिंह

जब ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा शुरू हुई थी, तब इस प्रकार के आकलन की वैज्ञानिकता पर काफी सवाल उठाए गए थे। लेकिन धीरे-धीरे वे सवाल खामोश होते गए। अब पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ने तथा इसके फलस्वरूप जलवायु संकट तीव्रतर होने की हकीकत पर मतभेद की गुंजाइश नहीं रह गई है। दुनिया भर के वैज्ञानिक अब यह अनुभव करने लगे हैं कि हम आधुनिक विकास के जिस रास्ते पर चल...

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इंद्र भरोसे खेती, पर कब तक--- बिभाष

हरित क्रांति के मसीहा डॉ नॉर्मन बोरलॉग ने साठ के दशक में बौनी प्रजाति के अधिक उपज वाले गेहूं की ईजाद की. सभी देशों की तरह भारत में भी उस गेहूं की खेती शुरू की गयी. बौनी प्रजाति के गेहूं ने उस वक्त की राजनीति गढ़ने का भी काम किया, जिस पर बहस और शोध होना चाहिए. देखते-देखते गेहूं की उपज दूनी हो गयी. सन् 1959-60 में जो गेहूं...

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अब चूके तो हाथ धो बैठेंगे पानी से- अनिल जोशी

पूरे देश में पानी को लेकर झगड़े शुरू हो चुके हैं। कहीं धारा-144 लगी है, तो कहीं बंदूकों के साये में पानी की चौकीदारी हो रही है। जगह-जगह पानी पर ताले लगे हैं। कई जगह रसूखदारों और दबंगों ने पानी पर अपना अधिकार जमा लिया है। पहले फसल चौपट हुई थी और अब लोगों को पीने का पानी तक नहीं मिल रहा। पानी तो खैर पहले भी बिकता था, अब...

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सिर उठाते दिख रहे हैं दो संकट - राजीव सचान

सहज मार्ग से नाम से प्रचलित आध्यात्मिक संस्था श्रीरामचंद्र मिशन के संस्थापक एवं अध्यक्ष रामचंद्र ने 1966 में प्रकाशित अपनी पुस्तक रियल्टी एट डॉन में भारत के उत्थान और पश्चिम के पराभव का एक खाका खींचा है। उन्होंने लिखा है कि इस पराभव का एक कारण पश्चिम में धरती के गर्भ में सक्रिय होने वाले ऐसे ज्वालामुखी भी बनेंगे जो अभी सुप्त अवस्था में हैं। पता नहीं, वह सब कुछ...

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