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जातीय विद्वेष की जड़ें- विनोद कुमार

जनसत्ता 16 मई, 2014 : असम की जातीय हिंसा पर कोई सार्थक बातचीत या चर्चा शुरूकरने का खतरा यह है कि कहीं आप अल्पसंख्यक विरोधी करार न दे दिए जाएं। वह भी उस वक्त जब असम में जातीय हिंसा में लोगों के मरने का सिलसिला साल दर साल बढ़ता गया है। ताजा हिंसा इत्तिफाक से मोदी के उस दौरे के तुरंत बाद शुरूहुई, जिसमें उन्होंने घुसपैठियों को देश से निकाल...

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झारखंड की अखंड लूट-विनोद कुमार

जनसत्ता 15 नवंबर, 2013 : तेरह साल पहले झारखंड राज्य का गठन हुआ था। झारखंड आंदोलन की काट में वनांचल आंदोलन खड़ा करने वाली भाजपा ने झारखंड राज्य का गठन क्यों किया, इसको लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अविभाजित बिहार की सत्ता पर काबिज होने की कोशिशों में विफल होने के बाद भाजपा ने अपने प्रभाव वाले इलाके की सत्ता पर काबिज होने की मंशा...

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पश्चिम मिदनापुर में बाल विवाह मेलों में आ रही है भारी भीड़

कोलकाता : त्योहारों के मौसम में अलग अलग तरह के मेले लगना आम बात है लेकिन बाल विवाह के गैरकानूनी होने के बावजूद जनजातीय पश्चिम मिदनापुर में बाल विवाह मेले आयोजित किए जाते हैं जहां बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ आती है. महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘सुचेतना’ की रिपोर्ट के अनुसार जनजातीय बाल विवाह के ऐसे मेले उत्सवों के इस मौसम में हर वर्ष...

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वे आदिवासियों के हितैषी नहीं- विनोद कुमार

तरीके से फैलाई गई है कि माओवादी आदिवासियों के रहनुमा हैं। जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसी वजह से मेधा पाटकर, अरुंधति राय, स्वामी अग्निवेश जैसे सामाजिक कार्यकर्ता जब-तब माओवादियों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। लेकिन यह भ्रम है। यह इत्तिफाक है कि अपने देश का जो वनक्षेत्र है वही जनजातीय क्षेत्र भी है, और माओवादी छापामार युद्ध की अपनी...

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वनाधिकार कानून का सफेद और स्याह

वनाधिकार कानून की यात्रा साल 2006 के बाद से आज दिन तक किस मुकाम तक पहुंची है- इसका जायजा लेने के लिए देश भर से कुछ समूह दिल्ली में जुटे थे। वनाधिकार कानून को अक्सर ऐतिहासिक करार दिया जाता है क्योंकि इस कानून वनक्षेत्र और उसके आस-पास रहने वाले समुदायों और व्यक्तियों को भूस्वामित्व का हकदार बनाया, इस हकदारी को अवैध करार देने वाले सदियों पुराने चलन का खात्मा किया।...

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