किसी कारोबारी द्वारा बैंकों का कर्ज चुकता न किये जाने से न सिर्फ बैंकों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी कमजोर होती है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के नुकसान की भरपाई अंततः सरकारी खजाने से करनी पड़ती है. यह खजाना देश की सामूहिक आय, नागरिकों द्वारा दिये गये कर और बचत की राशि से बनता है. इसका मतलब यह है कि...
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अच्छे दिनों की सतर्क उम्मीद-- कन्हैया सिंह
चालू वित्त वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार इस बार काफी सतर्कता बरत रही है। खासकर वर्तमान के आकलन और भविष्य के लक्ष्य तय करने के मामले में। बड़ी-बड़ी उम्मीदें बांधने की बजाय उसने व्यावहारिक रवैया अपनाया है। मसलन, अगले वित्त वर्ष की विकास दर को ही लें। सरकार ने अनुमान लगाया है कि अगले साल जीडीपी की विकास दर सात से साढ़े सात फीसदी के...
More »ताकि मौत को गले न लगाएं अन्नदाता - एनके सिंह
सरकार का यह कदम किसानों का भाग्य बदल सकता है और उन्हें आत्महत्या करने से बचा सकता है। हाल ही में केंद्र सरकार ने चिर-अपेक्षित नई फसल बीमा योजना मंजूर की, जो न केवल व्यावहारिक है, किसानों के लिए बेहद उत्साहजनक भी है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के अनुसार इस नई नीति के तहत किसानों को मात्र 1.5 से 2.5 प्रतिशत फसल बीमा राशि का अंश देना होगा।...
More »आत्महत्या की खेती
पंजाब में खेती की हताशा से आत्महत्या करने वालों में समाना के गांव गाजीसालार के जसवंत सिंह का नाम भी जुड़ गया है। कितना हृदयविदारक दृश्य होगा कि पहले बेटी की विदाई हुई फिर बाप की अर्थी उठी। जाहिर है कर्जे तले दबे किसान ने घाटे का काम साबित हो रही खेती से हताश होकर यह कदम उठाया। यह अकेली घटना नहीं है। पिछले दो महीने में बठिंडा व मानसा...
More »जेलों पर बढ़ते बोझ के मायने-- पंकज चतुर्वेदी
इरफान फरवरी 2007 में समझौता एक्सप्रेस से दिल्ली आया था, वापसी में उसमें बम फटा और उसका पूरा सामना जल गया। पुलिस ने उसे अस्पताल से उठाया व बगैर पासपोर्ट के भारत में रहने के आरोप में अदालत में खड़ा कर दिया। उसे चार साल की सजा हुई। तब से वह जेल में है यानी आठ साल से। वहां मिली यातना व तनहाई से वह पागल हो गया। पाकिस्तान में...
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