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आत्महत्या से बड़ा अपराध नहीं-- आशुतोष चतुर्वेदी

मेरा मानना है कि आत्महत्या और उसमें भी सामूहिक आत्महत्या से बड़ा कोई अपराध नहीं है. पिछले दिनों सामूहिक आत्महत्या की कई घटनाएं सामने आयीं, जो चिंतित करती हैं. इनमें से अधिकांश मामले आर्थिक परेशानियों से जुड़े हुए थे. रांची में आर्थिक तंगी से परेशान दो सगे भाइयों दीपक कुमार झा और रूपेश कुमार झा ने पहले परिवार के पांच सदस्यों की हत्या कर दी और फिर दोनों ने फांसी...

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अवसाद की फैलती महामारी-- आशुतोष चतुर्वेदी

आत्महत्या करने से बड़ा कोई अपराध नहीं है. हाल में तीन जाने-माने लोगों ने आत्महत्या की है. इसके अलावा ऐसी भी कई खबरें सामने आयीं कि 10वीं और 12वीं के नतीजों के बाद कुछ बच्चों ने भी आत्महत्या कर ली. जब-तब किसानों के भी आत्महत्या करने की खबरें आती रहती हैं. यह प्रवृत्ति गंभीर रूप धारण करती जा रही है. हाल में आध्यात्मिक गुरु भय्यूजी महाराज ने इंदौर स्थित अपने...

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बुजुर्गों की बदहाली-- मणींद्र नाथ ठाकुर

कहा जा रहा है कि दुनिया अब बूढ़ी हो रही है. पचास के दशक की तुलना में 21वीं शताब्दी में साठ साल से ऊपर की उम्र के लोगों की संख्या तीन गुनी ज्यादा हो जायेगी. भारत में भी लगभग आठ प्रतिशत जनसंख्या साठ से ऊपर है, बिहार जहां अपेक्षाकृत युवा ज्यादा हैं, वहां भी यह प्रतिशत सात से कम नहीं है. लेकिन दुनिया के विकसित देशों की तरह भारत में...

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बेबस मरीज और लूट का इलाज--- अश्विनी शर्मा

एक समय था जब लूट सामंती व्यवस्था द्वारा होती थी और अपनी जान की सलामती के लिए ज्यादातर लोग विरोध नहीं कर पाते थे। वह सामंती व्यवस्था समाप्त हो चुकी है और आज भारत विश्व-पटल पर अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन आम आदमी के साथ लूट का सिलसिला आज भी जारी है। बस, इस लूट के तरीके बदल गए हैं। अब यह लूट बैंकों के...

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मानवीय गरिमा के खिलाफ--- कनिष्का तिवारी

नए साल की शुरुआत में ही हस्त आधारित मल निस्तारण की वजह से सात लोग अपनी जान गंवा बैठे। वर्ष 2017 में यदि अखबारों के आंकड़ों पर ही गौर करें तो सौ दिनों के अंतराल में सत्रह मजदूरों को इस अमानवीय कार्य में लगने के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी। यह एक ऐसी समस्या है जो व्यक्ति की गरिमा को ठेस पहुंचाती है, साथ ही संविधान व मानवीय आचरण के...

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