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झारखंड: पहले जंगल उजाड़ा, फ‍िर उसे बसाने की पहल, लेकिन क‍िस कीमत पर?

इंडियास्पेंड, 24 नवम्बर  रामगढ़ के जित्रा टुंगरी गांव के पास जंगल में पहली बार में तो घूमना आसान लगता है। लेकिन जल्‍द ही घुटनों तक ऊंची घास और झाड़ियों के बीच बनी टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियां राह गठ‍िन कर देती हैं। कभी-कभी सांप और गड्ढों से बचना पड़ता है। कोयना खदानों के धंसने के कारण जमीन में बड़ी खाइयां हो जाती हैं। लेकिन स्थानीय लोग इससे और अन्य सभी खतरों से बचने में कामयाब...

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लद्दाख: आम नागरिकों की पहल से कारगर हो रहा वन्यजीव संरक्षण

मोंगाबे हिंदी, 17 नवम्बर लेह में रहने वाले 35 वर्षीय स्टैनज़िन चंबा प्रकृति की खोज में लद्दाख के नुब्रा घाटी में बीते पांच साल से जा रहे हैं। लेह शहर से लगभग 160 किलोमीटर दूर नुब्रा में उन्होंने कई प्रकार के वन्य जीव देखे लेकिन जो जीव उन्हें सबसे अधिक आकर्षित करता है वह है यूरेशियाई लिंक्स। लिंक्स को स्थानीय भाषा में ‘ई’ कहते हैं। “लद्दाख में ज्यादातर लोगों ‘ई’ का नाम...

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केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में रस्टी स्पॉटेड कैट की निगरानी के लिए 100 कैमरा ट्रैप

मोंगाबे हिंदी, 8 नवम्बर  पिछले महीने राजस्थान के भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अपने बिल्ली के बच्चे को ले जाते हुए एक रस्टी स्पॉटेड कैट (लोहे पर लगे जंग जैसे धब्बे) (वैज्ञानिक नाम- प्रियोनैलुरस रुबिगिनोसस) की तस्वीर सामने आई थी। इसके बाद अधिकारी सक्रियता के साथ इस प्रजाति की निगरानी के लिए रणनीतियां तैयार कर रहे हैं। भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान के उप वन संरक्षक (वन्यजीव) और केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक...

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'विंग अपस्ट्रीम: लूनी फेलोशिप' के लिए आवेदन की अंतिम तारीख 31 अक्टूबर, जल्द करें आवेदन

"मूविंग अपस्ट्रीम: लूनी" कार्यक्रम वेदितम इंडिया फाउंडेशन के मूविंग अपस्ट्रीम फेलोशिप कार्यक्रम का एक हिस्सा है। वेदितम इंडिया फाउंडेशन, आउट ऑफ ईडन वॉक के साथ साझेदारी में हैं। लूनी कार्यक्रम के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी के साथ साझेदारी की है और यह प्रयास A4Store और आउट ऑफ ईडन वॉक द्वारा समर्थित है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य नदी और उसके आसपास के जीवन का दस्तावेजीकरण करना...

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संरक्षण के अभाव में कहीं विलुप्त न हो जाए रोबदार बिल्ली स्याहगोश

मोंगाबे हिंदी, 20 अक्टूबर भारत में एक छोटी जंगली बिल्ली पाई जाती है। स्थानीय भाषा में इसे स्याहगोश कहते हैं। इसे कैराकल (कैराकल कैराकल श्मित्ज़ी)  के नाम से भी जाना जाता है। अब अनुमान लगाया जा रहा है कि देशभर में इनकी संख्या महज 50 ही बची है और वो भी देश के पश्चिमी हिस्से में। लंबे गुच्छेदार कानों और लाल-भूरे या रेतीले-भूरे रंग के फर के लिए प्रसिद्ध कैराकल गंभीर...

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