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महामारी में मजहब के आधार पर हुआ भेदभाव- वैश्विक रिपोर्ट

बात कोविड काल की है। अफगानिस्तान में बहुसंख्यक तबके ने करीब 25 सिखों को मौत के घाट उतार दिया। और इस कारण से सिखों में डर पसरा। जिसका नतीजा था लगभग 200 सिक्खों का हिंदुस्तान की ओर पलायन। यह पलायन उनकी ख्वाहिश से नहीं मजबूरी से उपजा था। प्रश्न यह है कि सिखों के साथ यह अत्याचार क्यों हो रहा था? अफगानिस्तान के बहुसंख्यक तबके का कहना था कि सिख कोविड...

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कार्बन ऑफ़सेट: सावधानीपूर्वक प्रयोग से हो सकती है उत्सर्जन में कमी, लेकिन सुधार हैं जरूरी

कार्बनकॉपी, 18 दिसंबर मध्य युग में सामाजिक और सांस्कृतिक सीमाओं के उल्लंघन की घटनाएं अचानक तेज हो गईं। तत्कालीन सुधारवादियों ने समाज में फैली इस नैतिक अधमता के लिए कैथोलिक चर्च द्वारा बेचे जाने वाले ‘लेटर ऑफ़ इंडलजेंस’, या क्षमा-पत्रों को ज़िम्मेदार ठहराया। यह पत्र पैसे या दान देकर चर्च से खरीदे जा सकते थे और कहा जाता था कि इन पत्रों के धारकों के सभी पाप धुल जाएंगे। इस तरह...

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कृषि में डिजिटलाइजेशन पर किसान संगठनों के पदाधिकारियों का मंथन, कहा डाटा का इस्तेमाल किसान हित में हो

रूरल वॉयस, 23 नवम्बर कृषि में डिजिटलाइजेशन के विषय पर 21 और 22 नवंबर को दिल्ली में देश के अनेक किसान संगठनों ने सामूहिक चर्चा की। चर्चा में सभी किसान संगठनों ने कृषि में डिजिटलीकरण के बारे में गंभीर चर्चा की और उसके विभिन्न पहलुओं पर अपनी राय व्यक्त की। कई संगठनों के पदाधिकारियों का मत था कि जब तक डाटा की सुरक्षा का कानूनी ढांचा तैयार नहीं होता तब तक...

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कॉप 27: दुनिया को 2040 तक शून्य फीसदी प्लास्टिक कचरे के लक्ष्य की है जरूरत

डाउन टू अर्थ, 11 नवम्बर प्लास्टिक उत्पादन और उसके बाद इससे होने वाला प्रदूषण जलवायु में बदलाव और जैव विविधता के नुकसान के लिए जिम्मेवार है। प्लास्टिक इस सप्ताह मिस्र में कॉप 27 में मुख्य चर्चा का विषय रहा। प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के लिए अपनी आगामी वैश्विक संधि में संयुक्त राष्ट्र से 2040 तक एक साहसिक संकल्प करने और नए प्लास्टिक प्रदूषण को शून्य पर लाने का लक्ष्य निर्धारित करने...

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बीते तीन सालों में सरकार ने 50 प्रतिशत कल्याणकारी योजनाओं को किया खत्म

डाउन टू अर्थ, 31 अक्टूबर किसी भी देश की प्रगति उसके द्वारा समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़ी जनता के लिए चलाई जा रही जन कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की सफलता से आंका जाता है। लेकिन केंद्र सरकार इस मामले में बहुत पिछड़ गई है और इसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले तीन वर्षों के अंदर मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाने...

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