SEARCH RESULT

Total Matching Records found : 948

लैंटाना से हाथी और फर्नीचर बनाकर इस आक्रामक पौधे को खत्म करने की कोशिश

मोंगाबे हिंदी, 04 जनवरी दुनिया की सबसे कुख्यात आक्रामक प्रजातियों में से एक लैंटाना (लैंटाना कैमारा ) के फैलाव को रोकने की उम्मीद के साथ साल 2009 में एक प्रयोग शुरू हुआ था। यह प्रयोग एनजीओ शोला ट्रस्ट ने तमिलनाडु के एक गांव में शुरू किया था जो लंबे समय तक चलने वाला था। एनजीओ ने गांव के स्थानीय समुदायों को लैंटाना के तनों की कटाई करने और उन्हें बेचने योग्य...

More »

जलवायु परिवर्तन को अनुकूल बनाने के लिए स्थानीय पहल अधिक जरूरी क्‍यों?

इंडियास्पेंड, 04 जनवरी झारखंड के लातेहार जिले के नेतरहाट पहाड़ियों में बसे गांव दादीचापर में बिरजिया जनजाति के लगभग 35 परिवार रहते हैं। बिरजिया समुदाय भारत के सबसे दुलर्भ चिन्हित 75 आदिवासी समूहों में से एक है। बादलों से ढकी घुमावदार पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरा हुआ यह क्षेत्र काफी मनोरम दिखता है। दादीचापर गांव, लातेहार शहर से 30 किलोमीटर दूर है और इस गांव तक एक पथरीली और घुमावदार सड़क...

More »

आत्मनिर्भर बन रही हैं केरल की आदिवासी महिलाएँ

बाबा मायाराम, पालक्काड़ “हम जल, जंगल और जंगली जानवरों का संरक्षण करने के साथ-साथ आदिवासियों की आजीविका को भी बचाने की कर रहे हैं। जंगल से हम उतना ही लेते हैं, जितनी जरूरत होती है। जंगली जानवरों के लिये को उनके पसंद के फल, फूल, पत्ते और कंद छोड़ देते हैं; जिससे वे भी जिये और जंगल की जैव-विविधता भी बनी रहे।” यह मंजू वासुदेवन थीं, केरल के त्रिचूर जिले में ‘फॉरेस्ट...

More »

भारत को वैज्ञानिक सोच के साथ आवारा कुत्तों से निपटना होगा

मोंगाबे हिंदी, 29 दिसम्बर  डेविड क्वामेन ने अपनी किताब ‘द सॉन्ग ऑफ द डोडो’ में लिखा है, “इस बीच, ब्रिटिश जहाजों से लाए गए घरेलू कुत्ते तस्मानिया में जंगली हो गए थे और वे हिंसक जंगली कुत्ते खुद ही कई भेड़ों को मार रहे थे।” उनकी किताब द्वीपों में प्रजातियों के खत्म होने का स्पष्ट रूप से वर्णन करती है। वे कई बार इंसानी वजहों से जानवरों के खत्म होने के...

More »

अन्यत मिलेटः अरुणाचल की थाली में वापस आ रहा पारंपरिक खान-पान से जुड़ा मोटा अनाज

मोंगाबे हिंदी, 22 दिसम्बर  माटी पर्टिन अब इस दुनिया में नहीं है। 97 साल की उम्र में उनका निधन हुआ।  जैसे-जैसे पर्टिन की उम्र बढ़ती गईं, उन्हें अन्यत (एक तरह का मोटा अनाज) की खूब याद आती थी। दरअसल, वह इसी अनाज को खाकर बड़ी हुई थी। उनकी पोती डिमम पर्टिन ने कहा, दादी के युवावस्था में यह मोटा अनाज खान-पान का अहम हिस्सा था। तब वह अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी...

More »

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close