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शक का दायरा और पुलिस की सोच-- विभूति नारायण

ढाई-तीन दशक पहले की एक शाम आईबी के एक वरिष्ठ अधिकारी से गपियाते हुए मुझे दो दिलचस्प तथ्य पता चले। पहला तो यह कि अलिखित नियमों के तहत आईबी यानी भारत की सबसे महत्वपूर्ण खुफिया संस्था इंटेलिजेंस ब्यूरो में किसी मुस्लिम आईपीएस अफसर को नहीं लिया जाता। यह कोई ढका-छिपा सच नहीं था। मुझे भी पता था, पर दिलचस्प इसलिए कह रहा हूं कि उन दिनों नौकरशाही के सबसे बड़े...

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सेवानिवृत्त वेटरन को मिले नौकरी- वरुण गांधी

भारत में सशस्त्र बलों के 25 लाख से अधिक वेटरंस (अनुभवी व्यक्ति) हैं, जिनमें से अधिकांश अच्छी तरह से प्रशिक्षित, प्रेरणा और उच्च कौशल से लैस नागरिक हैं, जो आगे बढ़कर राष्ट्रनिर्माण में योगदान देने को तत्पर हैं. इसमें हर साल लगभग 60,000 सैनिकों का और इजाफा हो जाता है. वेटरन में शामिल होनेवाले अधिकांश सैनिकों की उम्र 35 से 45 वर्ष के बीच होती हैं. हालांकि, इनमें से...

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अंतिम समाधान तो पुलिस ही है-- विभूति नारायण राय

दुनिया भर का अनुभव बताता है कि नागरिक असंतोष यदि समय से सुलझाया न जा सके और उसे अनुकूल खाद-पानी मिले, तो अंततोगत्वा वह एक सशस्त्र प्रतिरोध में तब्दील हो जाता है। खास तौर से जब धर्म जैसा कोई मजबूत दर्शन इसके पीछे हो और बिना किसी गंभीर प्रयास के सरकारें सिर्फ लीपापोती कर रही हों, तब स्थिति अधिक बिगड़ सकती है। शुरुआत में तो इस उभार का सामना नागरिक...

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कब उदार रहे हैं हम!-- आकार पटेल

नरेंद्र मोदी सरकार पर यह गलत आरोप लगाया जाता है कि वे भारत को एक तरह के उग्र या अनुदार राष्ट्र में बदल रहे हैं. अनुदार का मतलब असहिष्णु तथा अभिव्यक्ति और कर्म की आजादी पर को सीमित करने का समर्थन करना होता है. मैं कहता हूं कि इस सरकार पर अनुदार होने के गलत आरोप लगते हैं, क्योंकि तथ्य बताते हैं कि भारत की सरकार कभी भी बहुत उदार...

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भूख में तनी हुई मुट्ठी का नाम...-- रविभूषण

धूमिल (9 नवंबर 1936-10 फरवरी 1975) ने लिखा था, 'भूख से रियाती हुई फैली हथेली का नाम दया है, और भूख में तनी मुट्ठी का नाम नक्सलबाड़ी है' (नक्सलबाड़ी कविता, संसद से सड़क तक, 1972 में संकलित). बाद में नागार्जुन ने अपनी एक कविता में यह सवाल किया, 'भुक्खड़ के हाथों में यह बंदूक कहां से आई?' भारतीय राजनीति पर फरवरी 1967 के लोकसभा चुनाव का रैडिकल प्रभाव पड़ा. पश्चिम...

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