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हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी सालभर से खाली हैं शीर्ष संवैधानिक संस्थाएं

धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। प्रदेश की कई संवैधानिक संस्थाएं लंबे समय से प्रभारियों के भरोसे चल रही हैं। हाईकोर्ट ने भी कई बार सरकार को लोकायुक्त संगठन और मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं में पूर्णकालिक मुखिया की नियुक्ति करने के निर्देश दिए, लेकिन सरकार ने कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया। प्रदेश का शीर्ष संवैधानिक राज्यपाल का पद भी बीते एक साल से खाली है। लोकायुक्त का पद खाली सरकार का दावा...

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पहचान के पूर्वाग्रह से ग्रस्त समाज-- आकार पटेल

भारत के बारे में एक विचित्र बात यह है कि अगर काेई कुछ कहता है, तो उस बात की तुलना में कहनेवाला ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है. बेशक, दुनिया के अधिकांश हिस्सों में कुछ हद तक ऐसा ही है, लेकिन हमारे देश में अगर कुछ विवादास्पद कहा जा रहा है, तो जिसने विवादास्पद बातें कही हैं, उसके लिए सबसे पहले उस व्यक्ति की पहचान को उत्तरदायी माना जाता है. इसीलिए,...

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सेवानिवृत्ति के बाद--- क्षमा शर्मा

अट्ठावन साल पर रिटायरमेंट क्या हुआ, सलाह देने वालों की बाढ़ आ गई। किसी ने कहा- अब तो आप बेटे के पास जाकर अपने पोते को खिलाइए। फिर पूछा- बहू तो अच्छी है न! मन में कहीं यह सुनने-जाने की जिज्ञासा थी कि बेटे-बहू से बनती है कि नहीं। फिर अगर उम्रदराज औरत हो तो उसका स्टीरियो टाइप भी नहीं बदला है कि उसका एकमात्र काम बुढ़ापे में अपने बच्चों...

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रोजी बनाम राम- एकै साधे सब सधे--- मुकेश भारद्वाज

सरकार के हर मंच से नोटबंदी को सही बताने के बाद 2016-17 की चौथी तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद दर घट कर 7.1 से 6.1 फीसद पर आ गई। बाजार में तरलता की कमी से मांग घटी और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई। अब जबकि जीएसटी के अमल का समय नजदीक आ रहा है, सरकार जमीनी सच्चाई को नकारते हुए कमजोर अर्थव्यवस्था का ठीकरा...

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इतना काफी नहीं कर्मचारियों के लिए --- वरुण गांधी

कमजोर सेवा और कम उत्पादकता के कारण आम आदमी ही नहीं, निवेशक भी हमारी नौकरशाही की व्यवस्था को लेकर अच्छी राय नहीं रखते। फिर भी, इस सच्चाई को अनदेखा कर दिया जाता है कि सरकारी कर्मचारी, खासतौर से ऊंचे दर्जे के कर्मी, निजी क्षेत्र के कर्मियों के मुकाबले कम वेतन पर काम करने को मजबूर हैं। मसलन, 25 साल का अनुभव रखने वाले सरकारी डॉक्टर को औसतन 2.1 से 2.8...

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