वाशिंगटन। भारत की साढ़े सात फीसद आर्थिक विकास दर बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई हो सकती है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट में भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों पर यह संदेह जताया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार आर्थिक सुधारों के अपने वादों को पूरा करने की दिशा में धीमी रही है। अलबत्ता, इसमें नौकरशाही और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के क्षेत्र में बाधाओं...
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ताकि हर बच्चे को मिले अच्छी शिक्षा-- हरिवंश चतुर्वेदी
संख्या के आधार पर देखा जाए, तो दुनिया में भारत की स्कूली शिक्षा-व्यवस्था चीन के बाद दूसरे स्थान पर होगी। देश के15 लाख स्कूलों में 26 करोड़ बच्चे पढ़ते हैं। इन 15 लाख स्कूलों में 11 लाख सरकारी और चार लाख प्राइवेट स्कूल हैं। प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापकों की संख्या 85 लाख है, जिनमें से 47 लाख अध्यापक सरकारी स्कूलों में कार्यरत हैं। हर वर्ष सालाना परीक्षाओं में जब...
More »राजनीतिक दबाव व पुलिस की बेबसी के चलते यूपी में है जंगल राज- नीलांशु शुक्ल
मैं बीते चार सालों से दिल्ली में नौकरी कर रहा हूं। मूल रूप से यूपी के औद्योगिक केंद्र कानपुर का रहने वाला हूं। अधिकतर लोग जिन्हें बताता हूं कि मैं यूपी का रहने वाला हूं वो एक ही बात कहते हैं कि वहां क़ानून-व्यवस्था बेहद ख़राब है। कभी-कभी तो यूपी के प्रति लोगों की इस मानसिकता पर बेहद गुस्सा आता है, लेकिन प्रदेश में दिनोंदिन बिगड़ रही क़ानून व्यवस्था को...
More »सब्सिडी : कल्याण या राजनीति? मुफ्तखोरी के दुष्चक्र में फंसता देश
ज्यादातर देशों में एक ओर जहां राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए मुफ्तखोरी को हथियार बनाती हैं, वहीं इसी दुनिया में स्विटजरलैंड जैसा भी एक देश है, जहां की जनता ने सरकार की इस पेशकश को ठुकरा दिया. दूसरी तरफ भारत में देखें तो राजनीतिक पार्टियां और सरकारें मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्तखोरी को बढ़ावा देनेवाली नीतियों को प्रश्रय देती रहती हैं भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में सब्सिडी एक जरूरी...
More »चुनावी प्रक्रिया में परिवर्तन जरूरी--- शरत कुमार
हम सौभाग्यशाली हैं कि देश की चुनाव प्रक्रिया ही कार्यकारी राजनीतिक शक्ति का एक मात्र मार्ग है. हाल के साफ-सुथरे चुनावी परिणाम इसका सबूत हैं. हालांकि, चुनावी-प्रक्रिया में अनेक सुधारों के बावजूद आज भी आम जनता की राय में चुनावी प्रक्रिया देश की मूल खराबियों का मुख्य कारण है, जैसे कि सरकारी खजाने की चोरी, कालेधन की अपार महत्ता आदि. इन सब से जनता का चुनावी पद्धति और व्यवस्था में...
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