जातियों का उद्भव राजनीति के लिए नहीं हुआ था। मगर आज जातियां भारतीय राजनीति को आधार दे रही हैं। कहते हैं कि जातियों का उद्भव व्यवसायों व पेशों से जुड़ा था। पहले पेशे से ही जातियां निर्धारित होती थीं। फिर ये ‘जन्मना' अर्थात जन्म से जुड़ गईं। आज के दौर में, जब जातियों को ‘पहचान ' से जोड़कर उनका आक्रामक राजनीतिक इस्तेमाल किया जाने लगा है, तब इनकी एक नई...
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कर्नाटक के विनाश की नई राह-- रामचंद्र गुहा
यह 1989 की बात है जब मैं शिवराम कारंथ से उनके दक्षिण कर्नाटक स्थित गांव सालिग्राम में मिला था। आधुनिक कन्नड़ उपन्यास के जनक, यक्षगान जैसे प्राचीन नृत्य नाटक का पुनर्पाठ प्रस्तुत करने वाले, विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने वाले शिवराम कारंथ उन दिनों अपने प्यारे पश्चिमी घाटों को विनाश से बचाने की मुहिम में जुटे थे। 80 साल की उम्र में भी वे खासे सक्रिय रहकर...
More »तेल आयात व भारत-ईरान संबंध-- पुष्पेश पंत
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने पूर्व राष्ट्रपति ओबामा द्वारा ईरान के संपन्न परमाणु समझौते को न केवल खारिज कर दिया है, बल्कि ईरान के विरुद्ध कड़े आर्थिक प्रतिबंध भी लागू करने की घोषणा की है. जो बात और भी चिंताजनक है, वह यह कि ट्रंप ने अपने सभी संधि मित्रों और अन्य देशों को यह चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने ईरान के साथ अपने आर्थिक संबंधों को यथावत...
More »चिंतित करतीं तीन घटनाएं-- आशुतोष चतुर्वेदी
पिछले दिनों तीन गंभीर घटनाएं हुईं. ये घटनाएं हम सबके लिए चिंताजनक हैं, क्योंकि ये संकेत देती हैं कि देश किस दिशा में जा रहा है. ये घटनाएं बताती हैं कि अविश्वास का भाव कितने गहरे तक जा पहुंचा है. इन घटनाओं से सीधे तौर से हम और आप जैसे आम लोग जुड़े हैं, प्राथमिक रूप से इनसे कोई राजनेता नहीं जुड़ा है. पहली घटना में ईद मनाने के बाद...
More »किसानी से डरने वाला समाज-- मृणाल पांडे
आज के भारत भाग्य विधाता मानें या नहीं, अन्न उत्पादन के मामले में भारत का आत्मनिर्भर बन जाना, बीसवीं सदी की सबसे बड़ी घटनाओं और हमारी राष्ट्रीय उपलब्धियों में से है. लेकिन, कम लोगों को याद होगा कि हरित क्रांति के जनक नॉर्मन बोरलॉग ने नोबेल पुरस्कार ग्रहण करते वक्त भाषण में दो बातें कही थीं. पहला, हरित क्रांति अमरता की बूंदें पी कर नहीं आयी. इसका भी किसी दिन...
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