-बीबीसी, घर पर रहने के आदेश वापस लिए जाने लगे हैं और हममें से कई लोग काम पर लौटने लगे हैं. भारत में भी सोमवार से कई आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हो रही हैं. लेकिन सामान्य दिनचर्या को फिर से शुरू करने में आपको घबराहट क्यों है? जब हमें पहली बार अपने घरों तक सीमित किया गया तब हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लौटने के ख़्वाब देखते थे. हम अपने पसंदीदा पब, थिएटर...
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बुंदेलखंड: पलायन की इनसाइड स्टोरी, ललितपुर में खदानें बंद होने से 50 हजार से ज्यादा लोग बेरोजगार
-गांव कनेक्शन, ललितपुर जिले के मादौंन गांव की रैना सहारिया (40 वर्ष) उन हजारों प्रवासियों में से एक हैं, जो किसी तरह जद्दोजहद कर घर वापस तो आ गईं लेकिन खुश नहीं हैं। वो पहली बार कमाने के लिए अपने दो लड़कों के साथ घर से बाहर निकली थीं और लॉकडाउन की मुसीबत आ गई। रैना को चिंता कोरोना की नहीं, अपना घर चलाने की हैं, क्योंकि जहां उनका घर है...
More »बिल चुकाने के लिए पैसा नहीं बचा तो अस्पताल ने 80 वर्षीय मरीज बिस्तर से बांध दिया
-लोकवाणी, बिल चुकाने के लिए पैसा नहीं बचा तो अस्पताल ने 80 वर्षीय मरीज बिस्तर से बांध दिया. इन्हें मध्य प्रदेश के शाजापुर सिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. पांच दिन भर्ती रहे. परिजनों ने दो बार में 11 हजार रुपये का बिल जमा किया. अस्पताल ने 11 हजार रुपये और मांगे. बेटी ने कहा कि अब पैसा नहीं है, हमें अब घर जाने दो. इस पर अस्पताल ने कहा...
More »‘ग़रीबी ऐसी है कि मेरे मरने के बाद परिवार के पास अंतिम संस्कार के पैसे भी नहीं होंगे’
द वायर, ‘उई दिन अच्छे भले उठल रहलन. खाना बनाइके हम पूछलीं कि खा लेईं. बोलनन अभी नाहीं खाइब. नहा के खाइब. नहाइन धोइन अउर बिना कछु कहले बाहर निकल गइन. हम समझी बीड़ी लेवे गइल होइहें. जबसे घर आइल रहिस बहुते कम बाहर जाइस. कभो कभार खाली बीड़ी लेवे बाहर निकलैं. खाना परोस हम राह देख लगौं. देर होके लगी तो पता कइनी कि कहीं भाई के घर त नाहीं...
More »सहरिया आदिवासी: लॉकडाउन की मार से त्रस्त
इस बार गर्मियों के दिन पूरन के लिए कुछ अलग हैं, इस साल कोई 'फड़' नहीं लगी गांव में. वैसे हर साल इन दिनों में 'फड़' लगती थी और पूरन अपने परिवार सहित तेंदू पत्ता तोड़ने जंगल जाते थे, इस बार कोरोना वायरस की वजह से ऐसा नहीं हुआ. पूरन शिवपुरी जिले के कुंवरपुर गांव में रहते हैं, वो सहरिया आदिवासी हैं. इन दिनों वो कुंवरपुर की 'सहराना' बस्ती मे लॉकडाउन...
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