सीएसीपी यानी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की ताजा सिफारिशें जूट के किसानों के लिए आफत बन सकती हैं। आयोग का कहना है कि चीनी मिलों में शत-प्रतिशत जूट के बोरे के इस्तेमाल की मौजूदा नीति को बंद कर दिया जाए तथा खाद्य पदार्थों में नब्बे फीसद जूट की अनिवार्यता को पचहत्तर फीसद किया जाए। अगर ऐसा हुआ तो बंगाल का जूट किसान भूखों मर जाएगा। यही नहीं, जूट कारखानों व...
More »SEARCH RESULT
प्रकृति की ओर लौटते पंजाब के किसान
किसान हरजंट सिंह अपने गांव में निराले समझे जाते हैं. गांव का हर किसान उन्हें पहचानने का दावा करता है. हर कोई आपको उनके पास ले जाने का उत्साह दिखाता है. आख़िर उनमें क्या बात है जो दूसरों में नहीं? राय की कलां पंजाब के भटिंडा ज़िले में एक छोटा सा गांव है जहां हरजंट सिंह सदियों से चली आ रही परंपरागत तरीक़े से खेती करते हैं. उन्होंने अपने खेतों में कभी...
More »जल, जंगल और जिम्मेदारी-- शशि शेखर
आज विश्व पर्यावरण दिवस है और अपनी बात बचपन में सुनी हुई एक लोक कथा से शुरू करना चाहता हूं। कहानी कुछ यूं है- गांव के छोर पर एक पेड़ था। विशाल हरा-भरा। बच्चे उसके चारों ओर दौड़ते। तरह-तरह के खेल खेलते। कोई उसके तने के पीछे छिप जाता। कोई उसकी शाखाओं पर चढ़ने की कोशिश करता। पेड़ मगन था। बच्चों की हंसी उसे गुदगुदाती। वह हवाओं में झूम-झूमकर नाचता।...
More »पर्यावरणीय नैतिकता और यथार्थ-- के. सिद्धार्थ
सभ्यता और सभ्य होने का सिर्फ एक अर्थ है,अपने आसपास के पर्यावरण का आदर और आदरसूचक मूल्य से उसके प्रति सोच। सभ्यताओं का पतन तभी होता है जब आसपास के पर्यावरण के प्रति सम्मान कम हो जाता है, पर्यावरण के प्रति नजरिया व परिप्रेक्ष्य बदल जाता है। सिंधु घाटी, दजला फरात, माया- इन सभी सभ्यताओं का पतन इन्हीं कारणों का प्रतिफल था। आज का आधुनिक और सभ्य समाज पर्यावरण के...
More »सूखी वनस्पतियों का निस्तारण-- भरत झुनझुनवाला
उत्तराखंड के जंगलों में आग का तांडव जारी है. छिटपुट वर्षा से कुछ दिनों के लिए आग बुझ जाती है, परंतु फिर जंगल जलने लगते हैं. मूल समस्या सूखी पत्तियों एवं टहनियों के निस्तारण की है. पेड़ों की पत्तियां और घास जमीन पर जमा हो जाती हैं. ऊपरी क्षेत्रों में वर्षा होती रहती है या ठंड के कारण ये पदार्थ सूखते नहीं हैं. इनकी मोटी परत जमी रहती है और...
More »