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प्रेम से खौफ़ज़दा समाज - मृणाल पाण्डे

एंटी रोमियो अभियान के नाम पर की जा रही रही युवा जोडों की पकड धकड या पिटाई पर काँपने या झींकने से काम नहीं चलेगा| अगर भारतीय युवा पीढी को अपनी इच्छा से घर बाहर मिलने जुलने और निजी परिचय द्वारा बनी दुतरफा संतुष्टि को विवाह की अकाट्य पूर्व शर्त बनाना है, तो जान लें कि यह घर से सडक तक कई मोर्चों पर चलने जा रही एक लंबी लडाई...

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शिक्षा से सामाजिक सद्भाव-- जगमोहन सिंह राजपूत

यह हर राष्ट्र का पहला कर्तव्य है कि वह अपना भविष्य संवारने के लिए वर्तमान का लगातार वस्तुनिष्ठ विश्लेषण और तदनुरूप तैयारी करता रहे। लोकतंत्र में सर्वमान्य नीतियों का निर्माण बहुधा कठिन हो जाता है। फिर भी जब राष्ट्र की सुरक्षा खतरे में होती है तो सब मतभेद भुला दिए जाते हैं, उसी प्रकार भविष्य की पीढ़ी को सुचारु रूप से तैयार करने में भी राष्ट्रीय योजनाएं सभी की सहमति...

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खैरात बांटती राजनीति का सच -- अनुपम त्रिवेदी

अपने पिछले लेख में मैंने लोकतंत्र के दुरुपयोग और उसके बिगड़ते स्वरूप का उल्लेख किया था. यह भी जिक्र किया था कि कैसे राजनीतिक दल लोकतंत्र के नाम पर अनाचार में संलिप्त रहते हैं. उसी कड़ी में आज जिक्र एक ऐसे मुद्दे का, जिसने न केवल लोकतंत्र को कमजोर किया है, बल्कि हमारी खुद्दारी और स्वाभिमान पर भी गहरी चोट की है. बात है उस खैरात की, जिसे हर राजनीतिक...

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असहमति के अस्वीकार का दौर-- पवन के वर्मा

यह तो मैं समझ सकता हूं कि अपने देश में कुछ लोग उमर खालिद से इत्तिफाक नहीं रखते. मैं यह स्वीकार करने को भी तैयार हूं कि कुछ लोगों के अनुसार उसके विचार राष्ट्रविरोधी हैं. लेकिन, जो कुछ मैं नहीं समझ सकता, वह यह कि चूंकि ये लोग उससे सहमत नहीं हैं, इसलिए वे उसे बोलने नहीं देंगे. और मुझे यह भी मंजूर नहीं कि देशभक्त होने की परिभाषा राष्ट्रीयता...

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युवा हरदम रहा है आजादखयाल - मृणाल पांडे

कहना कठिन है कि जेएनयू के कमउम्र छात्रों तथा परिसर की गोष्ठियों में कुछ प्रत्याशित सी बहसों तथा अचानक आए अनजान लोगों की उकसाऊ नारेबाजी से सरकार ने एकदम उखड़कर शिक्षकों सहित उस परिसर को लगभग अपना भीषण दुश्मन क्यों मान लिया होगा? इस बात के तूल पकड़ने पर बेवजह उसने देश भर के अकादमिक जगत तथा मीडिया के बडे हिस्से से बेवजह दुश्मनी साध ली, पर अब लगता है...

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