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कागजों में पंचायती राज

स्तरीय पंचायती राज को ताकत देने के लिए संविधान में 1992 में बड़ा संशोधन हुआ और यह उम्मीद की गयी कि नयी पंचायती राज व्यवस्था पूरी तरह सशक्त, कारगर और अभिनव होगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पंचायती राज को कानून की ताकत मिली हुई है.पंचायती राज को कानून की ताकत मिली हुई है. इसकी अपनी खूबियां हैं, जो समृद्ध, विकसित, खुशहाल और सर्मथ गांवों की परिकल्पना पर टिकी है. इन खूबियों...

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चुनाव आयोग ने पेड न्यूज को ‘नैतिक कदाचार’ करार दिया

नयी दिल्ली। पेड न्यूज को ‘नैतिक कदाचार\' करार देते हुए चुनाव आयोग ने आज इस बात पर खेद व्यक्त किया कि इसे परिभाषित करने के लिए कोई कानून नहीं है। मुख्य चुनाव आयुक्त वी एस संपत ने यहां एक परिचर्चा कार्यशाला के दौरान कहा, ‘‘पेड न्यूज एक ऐसा क्षेत्र है जिसे हम अपने जोखिम पर नजरंदाज कर सकते हैं। लेकिन इसे परिभाषित करने के लिए कोई कानून नहीं है।\'\' आयोग के अनुसार,...

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आरक्षण की उलझन- योगेश अटल

जनसत्ता 20 अप्रैल, 2013: अब आरक्षण से जुड़ा आज का प्रश्न। नए भारत का संविधान रचने वालों ने प्रारंभ में इसकी आवश्यकता को नहीं स्वीकारा। कहा जाता है कि खुद आंबेडकर इसके पक्ष में नहीं थे। बड़े संकोच के साथ उन्होंने इस सुझाव को सम्मिलित किया और वह भी केवल चुनिंदा समूहों के लिए और प्रारंभ के कुछ वर्षों के लिए। आरक्षण का प्रावधान उन जातियों और आदिवासी समूहों के...

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बेलगाम हो जाएंगी चीनी मिलें- महक सिंह

रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने के संबंध में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी। इसी के आधार पर सरकार ने चीनी उद्योग को आंशिक रूप से नियंत्रण मुक्त करने के फैसले को मंजूरी दे दी है। मगर यह फैसला गन्ना किसानों या उपभोक्ताओं के नहीं, चीनी मिलों के पक्ष में है। लेवी चीनी बेचने...

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खाद्य सुरक्षा की शर्तें- रविशंकर

जनसत्ता 12 अप्रैल, 2013: हालांकि यूपीए सरकार की मंशा थी कि बजट सत्र में ही खाद्य सुरक्षा विधेयक को संसद से पास करा लिया जाए, पर ऐसा नहीं हो पाया। संसद की कार्यवाही बार-बार स्थगित होने से संशोधित विधेयक अब तक पेश नहीं हो सका है। अब इस विधेयक के बजट सत्र के अंतराल के बाद पेश होने की उम्मीद है। वास्तव में यह विधेयक यूपीए के 2009 के उस...

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