अकाल बुंदेलखंड की चौखट पर मुंह बाए खड़ा है। ललितपुर जिला सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में से एक है। जिला कृषि विभाग के ताजा आंकड़े बताते हैं कि सत्तर फीसदी खेत बिना बुआई के वीरान पड़े हैं। कई किसान बदहाली के शिकार होकर अपनी स्वभाविक मौत मर चुके हैं तो कुछ एक खुदकुशी की भी खबरें हैं। इतने संवेदनशील मुद्दे पर भी सरकारी अमला कितने संवेदनहीन तरीके से...
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राजनीति में धन के इस्तेमाल का जनप्रतिनिधित्व पर प्रभाव-- अनिल वर्मा
विशेषज्ञ वर्षों से कह रहे हैं कि राजनीति और चुनावों में धन के बढ़ते इस्तेमाल से निर्वाचन प्रक्रिया में गरीबों के लिए अवसर कम होते जा रहे हैं और इससे निबटने के लिए चुनाव सुधार जरूरी हो गया है. अब यही चिंता देश के मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने भी जतायी है. ‘राजनीति में धन के इस्तेमाल का जनप्रतिनिधित्व पर प्रभाव' विषय पर नयी दिल्ली में इस हफ्ते आयोजित...
More »मेरी, आपकी और उनकी कार-- हरजिंदर
मध्य वर्ग के लिए कार सिर्फ कार नहीं होती। महानगरों से लेकर छोटे शहरों और कस्बों तक, वह एक ऐसे सपने का परिणाम भी होती है, जिसे लंबे समय तक संजोया जाता है। इस सपने को पूरा करने के लिए न सिर्फ जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है, बल्कि तरह-तरह के जुगाड़ भी बिठाने पड़ते हैं- मार्जिन मनी, कार लोन वगैरह। इस वर्ग के लिए यह सपना कितना महत्व रखता है,...
More »मंशा नेक पर अभी तो मुमकिन नहीं - सुषमा रामचंद्रन
चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास 'अ टेल ऑफ टू सिटीज" की मशहूर पंक्तियां हैं : 'वह सबसे बेहतरीन दौर था, लेकिन वह सबसे बदतर भी था।" दिल्ली सरकार के सम-विषम फॉर्मूले के परिप्रेक्ष्य में हम डिकेंस के इस संवाद को बदलकर यूं भी कर सकते हैं कि 'वह एक बेहतरीन विचार था, लेकिन वह बदतर भी था!" हां, यह जरूर है कि दिल्ली सरकार के इस निर्णय के बाद इस महानगर...
More »चेन्नई बाढ़ : एक मानव निर्मित त्रासदी
चेन्नई की बाढ़ जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों का एक भयावह उदाहरण तो है ही, इससे हुई तबाही ने मानव समाज की खतरनाक गलतियों के नतीजों को भी रेखांकित किया है. हाल के वर्षों में उत्तराखंड, कश्मीर समेत देश के विभिन्न इलाकों में बाढ़ की त्रासदी का कहर लगातार बढ़ा है. तेज शहरीकरण और विकास की आपाधापी में सरकार और समाज प्राकृतिक तंत्रों को बेतहाशा बरबाद कर रहे हैं. नदियां...
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